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मंगलवार, 25 नवंबर 2008

खंडहर

बहुत दिनों से विवाह समारोहों में व्यस्तता के चलते कुछ लिख नहीं सका। या यों कहें, शादियों में कारगिल सा युद्ध लड़कर ही लुत्फ उठा रहा था। विवाह समारोह भी अब सामान्य नहीं रहे। रिश्तेदारों को बुलाने से लेकर उनको खिलाने तक में बहुत कुछ बदल गया है। एक देहाती शादी में जाने का अवसर मिला जहां पर पत्तल की दावत के लिये कुछ मिनट इंतजार के बाद ही नम्बर आ गया। जिसने शादी में बुलाया था वह हर दो-तीन मिनट बाद ही आकर पूछ जाता एक पूड़ी तो और ले लो। कोई आकर कहता अरे बिल्कुल अभी-अभी कढ़ाई से निकालकर लाया हूं। खाने में व्यंजन कम और प्यार ज्यादा नजर आया। उसके ठीक दूसरे दिन शहर के एक प्रतिष्ठित व्यवसायी के यहां जाने का सौभाग्य हुआ। दरवाजे पर ही मेजबान के दशर्न हुए फिर हम अंदर थे एक समुंदर की तरह लोग आते जा रहे थे। किसको क्या मिला क्या नहीं इस बात से किसी को मतलब नहीं। कौन भूखा गया यह देखने की फुर्सत किसी को नहीं। अधिकांश लोग तो दस-बारह कार्ड गाड़ी में रखकर लाये थे। हर जगह फेरी लगा-लगाकर ही पेट भर गया। लेकिन उन बेचारों का क्या जो सिर्फ एक ही शादी में पेट भरने की जुगाड़ से गये थे। खैर ये तो व्यवस्था का सवाल है। आजकल इन प्रतिष्ठित शादियों में जाने वाले ऐसे लोग ज्यादा होते हैं जिन्हें कई जगह जाना होता है। इस खाने-पीने के बीच एक कविता लिखने का मन कर आया। डरिये नहीं, कविता का खाने पीने से कोई मतलब नहीं है।
खंडहर
वो
निर्जीव खंडहर
जो सहता है प्रकृति का हर बार
अपनी टूटी जर्जर दीवारों के सहारे
जिसके आगोश में दफन है
न जाने कितने युगों का इतिहास
जिसने सहा है
सैकड़ों दुशमनों का प्रहार।
पर यह निर्जीव खंडहर
जस का तस खड़ा रहा
हर युग में
समय का सबसे बड़ा राजदार
मौन हो देखता रहा
दिन- रात का बदलना
मानव का मानव से लड़ना।
यही निर्जीव खंडहर
जैसे अट्ठाहस लगा रहा हो
हमारी मजबूरी पर
और कह रहा हो
कितना मूर्ख है मनुष्य
जो मेरी चाहत में ही मर मिटा।
कभी लगता घूरता मुझे
ये निर्जीव खंडहर।।
पंकज कुलश्रेष्ठ

बुधवार, 5 नवंबर 2008

अपना-अपना कारगिल

दोस्तों बहुत ही विषम परिस्थिति सामने आने वाली है। आओ हम सब मिलकर युद्ध की तैयारी में लग जाएं। जब युद्ध करना ही है तो पहले उसकी ड्रेस का निर्धारण कर लें। सामान्य तौर पर इस युद्ध के लिये लोग सूट का इस्तेमाल करते हैं। जरूरी है कि अपनी-अपनी शादी के सिलाये सूट निकालकर उनपर स्त्री-सिस्त्री करवा लें। एक अदद जूते भी खरीद लें। ठोस और जमाऊ एड़ी वाले जूते को प्राथमिकता दें। अगर सूट नहीं है तो ठीक-ठाक सी जैकेट से भी काम चल सकता है। युद्ध का बिगुल नौ तारीख को बजने जा रहा है। आपको कब इस युद्ध में जाना है इसके लिये घर में रखे कार्ड देख लें। नहीं समझे। अरे दद्दू। शादी में खाने जाओगे तो युद्ध तो करना ही होगा। तुम क्या सोच रहे थे बार्डर पर तुम्हें भेजने का रिस्क लूंगा? कतई नहीं। तुम जाकर कारगिल की लड़ाई लड़ोगे और गोल्ड पाओगे? अरे भाई बीबी को सभी स्टाल का नाश्ता चखा दिया तो समझ लेना वीरता पदक मिल गया।
ध्यान रहे, पुराने समय की कहावत को मत भूल जाना। जिसने की शरम उसके फूटे करम। शादी में चाहे लड़की वाले की ओर से जाओ चाहें लड़के वाले की ओर से अपना टारगेट मत भूल जाना। सबसे पहले खुद पानी की टिकिया की लाइन में लगना और भाभी जी को भल्ले के लिए खड़ा कर देना। लाइन में लगते समय कतई बच्चे और बूढ़े का लिहाज मत कर जाना। यूं खड़े हुए तो बर्तन खाली होने के बाद ही नम्बर आयेगा। अपने सूट की क्रीज की चिन्ता की तो समझ लेना गये काम से। पता नहीं कब कोई भाई, भाभी या माताजी पीछे से आपके सूट पर दही या सौंठ टपका दें।
अपने दास जी इस मामले में बहुत ही एक्सपीरेंस्ड हैं। बिल्कुल अमेरिका की तरह। कोई लाइन नहीं, सब जगह बीटो पावर का इस्तेमाल। भैये सबसे पहले टिकिया वाले के पास पीछे से जाते हैं और रौब से कहते हैं, छोटू मजे में है। कैसा चल रहा है। अब टिकिया वाले को छोटू कहो या बड़को सब चलता है। बेचारा खींसे निपोर देता है और दास जी अचक से दोना उठाकर बढ़ा देते हैं जरा चखइयो तो। कैसा पानी बनाया है तूने। दास जी अपने साथ एक-दो चमचे को ले लेते हैं। कभी भल्ले वाले से पूछते हैं कोई चीछ कम तो नहीं। भल्ले वाला दमक कर बोल देता है सब ठीक है बाऊजी। बस हो गया दासजी का काम। हाथ बढ़ा कर कह देते हैं जरा दिखइयो तो कैसा माल डाल रहा है तू। दास जी एक-एक करके सभी स्टाल का माल चख लेते हैं।
ये दास जी के एक्सपीरेंस का मामला है। आपको तो आमने-सामने का युद्ध ही करना है। कभी इसको झिड़का, अरे क्या तमीज नहीं है भाई। पैंट पर दही गेर दिया। इसी बीचे पीछे से कोई बच्चा निकला नहीं कि पूरी पैंट का कबाड़ा। ऐसे में बड़बड़ाने के अलावा क्या कर सकते हैं। पहले खाने को तो मिले। पिछली बार चचे शादी में गये तो भूखे ही आ गये। एक स्टाल पर गये तो वहां भाभी और चाची जी को ही आगे करते रहे। यूं ही पहले आप-पहले आप कहते-कहते शाम से रात हो गयी और प्लेट साफ की साफ ही रही। बाहर निकले तो लिफाफा थमा दिया लड़की के पिता के हाथ में। उन्होंने भी पूछ लिया, अरे भाई कुछ लिया कि नहीं। बिना लिये मत जाना। अब उन्हें कौन बताये, कुछ हो तो लें।
पिछली बार अपने एक दद्दू भी गाम से पहली बार शहर की शादी में आ गये। अंदर पहुंचे तो सबसे पहले छोरी के पिता को ढूंढने में लग गयी। लड़की के चाचा मिले तो नमस्ते कर दी। एक बार नमस्ते कर आये पर कोई असर नहीं। इसके बाद एक-एक करके दर्जन भर बार नमस्ते कर आये। बार-बार सोच रहे कोई खाने को पूछे। किसी ने उनसे खाने को नहीं पूछी। बेचारे सोच रहे थे कोई एक बार तो कह दे कुछ खा लो दद्दू।
इस युद्द में जो भी अपने दोनों हाथों में दोने लेकर निकलता है वह खुद को राणा प्रताप से कम नहीं समझता। बाहर सबसे पहले दोने बीबी को थमाता है फिर अपना कोट संभलता है। बड़ी मुश्किल से मिला। लो चुन्नू तुम भी चख लो। पता नहीं, अंकल ने कैसा इंतजाम कराया है।
नाश्ते के बाद चुन्नू के पापा खाने की ओर गये और प्लेट में एक-एक करके सब कुछ भर लाते हैं। यही खाने का दस्तूर है। बार-बार लाइन में कौन लगे। कभी-कभी तो ऐसा लगता है मटर पनीर में दही ज्यादा पड़ गया या रसगुल्ला थोड़ा चटपटा है। कभी दाल मीठी सी लगने लगती है तो कभी मिठाई नमकीन। जब लोग सब ओर से निपट लेते हैं फिर ध्यान आती है कि वो शादी में मेहमान है। अपनी घरवाली से कहते हैं सुनो, वो लिफाफा जरा दे आओ फिर चलें। ये युद्ध किसी कारगिल से कम नहीं है। फिर चलो। तैयार हो जाएं।
पंकुल

रविवार, 2 नवंबर 2008

मैं कुत्ता(4)ः तरक्की के लिये टांग खिंचाई जरूरी


ये बात मुझसे बेहतर कौन जानता है कि कुत्ता आखिर कुत्ता ही होता है। हम लोगों को कुत्ता इसीलिये कहा जाता है क्योंकि हमारी कोई औकात नहीं होती। हमारी औकात नहीं होती इसलिये हम दूसरों की औकात को परखने की कोशिश करते हैं। हमारा यही सगुण आज मानव जाति के उत्थान का कारण बनता जा रहा है। सही मायनों में हमने लोगों को दिशा और दशा दिखायी है। समाज के पथ प्रदर्शक हम ही हैं। हम लोगों को कुत्ता खिंचाई जिसे आपके यहां टांग खिंचाई भी कहते हैं का प्रचलन प्राचीन काल से है। इस प्रथा का अनुसरण करने से आप लोग तरक्की कर रहे हैं।
हमारे सामने से रात को कोई भी आदमी ऐसा नहीं निकलता जिसका हम पीछा न करते हों। पैदल से लेकर कार वाले तक का हम अपनी सीमा के बाहर तक पीछा करते हैं। कई बार लोग स्कूटर पर टांग ऊंची करके हमसे बचने का प्रयास करते हैं। बड़े-बड़े धुरंधर रास्ता बदलकर चुपचाप निकल जाते हैं। रात के अंधेरे में लोगों को पता ही नहीं चलता हम कहां से निकलकर उनका पीछा करने लगते हैं। हमारी शिकारी अदा के अच्छे-अच्छे कायल हैं। असली आनंद तो तभी आता है जब लोग मोटर साइकिल और स्कूटरों की स्पीड दुगनी कर देते हैं। तुम्हारी कसम कई लोगों को तो मैंने ही गाड़ी से लुढ़कते देखा है। गाड़ी रुकने के बाद हमारा कोई विवाद नहीं होता। हम यह पीछा सिर्फ इसलिये करते हैं जिससे लोगों को आपनी औकात का पता चल जाए। पीछा करने से हमें आत्मिक सुकून भी मिलता है। अब आप लोग भी इसका अनुसरण करने लगे हो यह अच्छी बात है। सरकारी ठेके से लेकर बड़े-बड़े कामों तक इसी विद्या से काम चल रहा है। नैनो में सपना लेकर आने वालों के लिये आपके दिल में भी हमारी तरह कोई मोह-ममता नहीं है। कोई धुरंधर आये पर टाटा करके जाना ही पड़ेगा। तमाम ऐसे लोग हैं जिनकी ओर से लोगों ने गुजरना ही बंद कर दिया है। आपको हमारी इस विद्या से आर्थिक संतुष्टि होती है। बड़े-बड़े फक्कड़ इस कुत्ता परेड के चक्कर में शानदार गाड़ियों में घूमने लगे। अब हम उनकी गाड़ी का पीछा कर रहे हैं और वो अपने से बड़ी गाड़ियों को खोज रहे हैं।
यह कुत्ता परेड डर पैदा करने के लिए की जाती है। कई बार जाड़ों में हम चुपचाप पेट में सिर छिपाये बैठे रहते हैं और उधर से गुजरने वाले बिना पीछा किये ही टांग उठा लेते हैं। ऐसा नहीं लोगों को यह भी मालूम है कि जो भौंकते हैं वो काटते नहीं फिर भी हमारा डर उन्हें डराता रहता है। आपके यहां भाई लोगों ने भी इसी थ्योरी पर काम करना शुरू कर दिया है। एक बार किसी को चौराहे पर दो थप्पड़ जड़े फिर वह हमेशा वह उन्हीं के नाम की माला जपने लगता है। कुछ कुत्ते रात को चुपचाप एक कोने में पड़े रहते हैं। ऐसे कुत्तों ने पूरे समाज की नाक कटवा दी है। कभी कोई गाड़ी वाला उनकी टांग पर पहिया चढ़ा जाए या कभी कोई बच्चा लात मार जाए वह सिर्फ कूं-कूं कर सकते हैं। ऐसे कुछ मनुष्य भी हैं लेकिन उन्हें कोई पूछ ही नहीं रहा।(क्रमश)
पंकुल