pankul

pankul

ये तो देखें

कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

मैं कुत्ताः चमचागीरी कोई हमसे सीखे




यह बहुत पेचीदा प्रश्न हो सकता है कि इंसान प्राचीन चमचा है या कुत्ता। इस प्रश्न का हल भी मुर्गी पहले पैदा हुई या अंडा सरीखा है। हम तो इतना जानते हैं पीढ़ियों से चमचागीरी करते-करते हम कुत्ते परिपक्व हो गये हैं। इसी चमचागीरी का नतीजा है हम शताब्दियों से इन्सान के साथ हैं।
चमचागीरी के कई नुस्खे हैं। सबसे पहले मालिक के आस-पास रहने की कोशिश करो। अगर मालिक के पास दो-तीन कुत्ते (चमचे) हैं तो वहां कम्पटीशन बढ़ जाता है। सुबह उठते ही मालिक के चरणों में लोट लगा दो। मालिक अगर हाथ इधर-उधर उठाये तो उसी दिशा में देखकर भौंकने लगो। अपने साथी कुत्ते को मालिक के आस-पास आने भी मत दो। जब खाना दिया जाए तो कोशिश करो मालिक की आंख के सामने न खाओ। कम से कम मालिक जब तक खाना न खाये, रोटी को मुंह तक न लगाओ। हां, अगर मालिक रोटी का टुकड़ा आपकी ओर फेंक दे तो उसे एक कोने में ले जाकर ऐसे खाओ जैसे बहुत बड़ा उपहार मिल गया हो। दरवाजे पर किसी अपरिचित के आते ही भौंकने लगो। जब मालिक डांट दे तो पूंछ हिलाते हुए उसके पास आ जाओ।
कुत्तों के चमचागीरी के यह गुण बिल्कुल इंसान सरीखे हैं। जिन लोगों को चमचागीरी का शौक होता है वह अपने मालिक (नेता, अफसर) के सामने जाते ही दण्डवत हो जाते हैं। अक्सर बड़े नेताओं और लोगों के एक से ज्यादा चमचे होते हैं। यहां वही चमचा सफल है जो सुबह मालिक के सोकर उठने से पहले ही दरवाजे पर जाकर खड़ा हो जाता है। दरवाजा खुला नहीं कि मालिक को प्रणाम किया। मालिकिन से सामान की लिस्ट ली और मालिक के पांव दबाये। घर में खींसे निपोरते-निपोरते बैठे रहें लेकिन खाना नहीं खायें। मालिक जो बात कहे उसकी हां में हां मिलाये। अगर मालिक कहे, मैं कल चांद पर जाऊंगा तो पहले ही कह दें, अरे आप तो जाने कब के चांद पर हो आते। आपने ही पहले दूसरों को मौका दिया। मालिक कहे मैं महान तो कहो अरे आप से बढ़कर कोई महान हो ही नहीं सकता। जब मालिक कहीं किसी जुगाड़ का काम करा दे तो कहो, आपने तो मेरी सात पुस्तैं सुधार दीं। मालिक कहे, भौंको तो काटने को दौड़ पड़ो। मालिक ने डांटा तो चुपचाप दुम हिलाते रहो।
ऐसे चमचों के सामने अक्सर दिक्कत नहीं आतीं। चमचे वाकई प्रेरणा के स्रोत हैं। चमचों से धैर्य रखने की प्रेरणा प्राप्त होती है। जब मालिक का खानदान सुविधायें पा लेगा तो चमचों को उसका लाभ मिलेगा। दिक्कत सबसे ज्यादा मोहल्ला चमचों के सामने आती है। हम कुत्ते तो अक्सर इस दिक्कत को झेल जाते हैं। एक मोहल्ले में रहते-रहते हम पालतू न होते हुए भी पालतू सरीखे हो जाते हैं। जिसके घर में गये वहीं रोटी का टुकड़ा मिल गया। दिन भर मजे से पेट भर जाता है। शाम को सभी के घरों के बाहर भौंक आये और अपना काम पूरा।
इंसानी मोहल्ला चमचों के आगे बहुत दिक्कत आती हैं। एक घर से निकलकर दूसरे घर में गये तो पड़ोसी के यहां नम्बर कट। एक मालिकिन का काम किया तो दूसरी का मुहं फूल जाएगा। इसके बाद भी तमाम मोहल्ला चमचे सफल हैं। सफल ही नहीं पूरी तरह हिट हैं। ऐसे महान चमचे हमेशा आदरणीय होते हैं। यही वो चमचे होते हैं जो भविष्य में प्रगति करते हैं। रिस्क लेकर आगे बढ़ते हैं। पहले मालिक के यहां जी हजूरी करते हैं फिर मालिक से बराबरी करने लगते हैं। ऐसे ही महान चमचे अपने भी चमचे पालते हैं। यही इनकी सफलता का राज है। ऊपर से चमचागीरी का मौका मिला और नीचे अपने चमचों को लगा दिया काम पर। ये महान चमचे मालिक के सामने पेट पर हाथ रखकर ऐसे बैठते हैं जैसे महीनों से रोटी नसीब न हुई हो पर ऐसा होता नहीं। यह सिर्फ भूखे रहने का स्टाइल मारते हैं। इसी लिये कहा जाता है हर सफल मालिक कभी न कभी मोहल्ला चमचा रहा होता है।
हम कुत्तों के लिये ऐसे मोहल्ला चमचे सदैव भगवान स्वरूप रहेंगे। यह वो कठिन काम है जो हम कुत्ते भी नहीं कर सकते। हमारे यहां जो मोहल्ला कुत्ते हैं उन्हें सिर्फ रोटियां मिलती हैं और इंसानी मोहल्ला चमचों को दूध मलाई और बोटियां खाने को मिलती हैं। बोटियां भी इतनी कि खुद खायें और अपने चमचों को बांट दें।
पंकुल

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

नित्य- निरंतर

मानवीय सोच और संवेदनाओं को समर्पित दो लघु कविताएं लिख रहा हूं। लिखने के लिये बार-बार निरंतरता बनाने का प्रयास करता हूं लेकिन हर बार कोई न कोई कारण गैप बना देता है।
यों ही

मानव क्यों उठा रहा अपनी अर्थी
स्व कंधों पर।
इस शहर से उस शहर तक
अन्जाने खामोश पथ पर
कब तक फिरेगा
यों ही बेसहारा।
तेरे अपने इस जीवन पर
हक है तेरा पूरा फिर भी
क्यों उठा रहा अपनी अर्थी।
जीवन के कुछ मूल्य
वो समय बहुमूल्य
जो तूने खोया
यों ही बेकाम।
ठहर कुछ पा सकता है अब भी
सोच क्या बन गया है मानव
क्यों उठा रहा अपनी अर्थी,
स्व कंधों पर।।


नित्य- निरंतर


यह मेरे स्वप्न
मेरी धरोहर
इनका टूटना-जुड़ना
नित्य-निरंतर
एक विडम्बना है।
कल्पना के आधार पर
विचारों का किला
सदैव हर आहट पर
भरभराकर गिरा
इसका बनकर बिखरना
नित्य-निरंतर
एक विडम्बना है।
आसमां के पंक्षी की तरह
दूर कहीं उड़ चला
पर पलक खुलते ही
जमीन पर आ गिरा
इसका उड़कर गिरना
नित्य-निरंतर
एक विडम्बना है।
पंकुल