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गुरुवार, 19 मार्च 2009

जय भ्रष्टाचार, जय भाई-भतीजावाद

भैये उडन तस्तरी। आपने पुरानी कहावत सुनी है, जो बोले सो कुंडी खोले। अरे पार्टी कार्यालय की कोई समस्या नहीं है इसे आपके यहां बना देंगे। ऐसा भी हो सकता है अपनी पार्टी का कारपोरेट कार्यालय आपके घर बन जाए। आप सोच रहे होगे, कारपोरेट कार्यालय की क्या जरूरत है। भैये समझाये देते हैं, दास जी आज के जमाने के पालिटीशियन है। हर काम का दाम फिक्स है।
जब दास जी की सरकार बन जाएगी तो काम कराने के ठेके इसी कारपोरेट आफिस से लिये जाएंगे। पुराने पालिटीशियन खामखा स्विस बैंक में पैसा जमा करके बदनाम हुए। उनकी भी कोई कमी नहीं थी। बेचारों पर इतना पैसा कहां था जो ज्यादा जमा करते। हजार-पांच सौ करोड़ से होता ही क्या है। दास जी ने फैसला किया है कि सभी मंत्रियों के पैसे लेकर एक अपना बैंक खोलेंगे।बैंक का हैड आफिस भी इसी कारपोरेट आफिस में होगा। और भैये आप तो बैंक के डायरेक्टर हो गये। इसके अलावा भी जो पद चाहोगे दे देंगे, पर प्रधानमंत्री की ओर आंख भी मत उठाना। वो पद दास जी के लिये रिजर्व है। इसमें न नम्बर गेम है और न ही मनी गेम।घबराइये नहीं, दास जी के यहां देशी-विदेशी का मुद्दा नहीं है। आप अपने आस-पास के लोगों को इस पार्टी फंड से जोड़ सकते हैं। आगे जो सड़क, पुल के ठेके दिये जाएंगे उसमें सब कुछ एडजस्ट हो जाएगा। जो कुछ नहीं बनाता उसको कंसलटेंसी एजेंसी के नाम पर समझ लिया जाएगा। आप कहोगे तो ताऊ-बाऊ को भी फिट कर लिया जाएगा।
दास जी गांधी वादी हैं। ईश्वर अल्लाह तेरे नाम। दास जी ने इसमें जोड़ा है अमेरिका हो या हिन्दुस्तान, सबका कमीशन दे भगवान। महामंत्री जी, आप नाम से ही महामंत्री ठहरे। पर ध्यान रखना, पदांवटन से लेकर कुर्सी आवंटन तक बिना पैसे के नहीं चलेगा। हमने यह प्रेक्टिकल अपने यहां कर रखा है। जितना बड़ा पद, उतनी मोटी दक्षणा। ब्रीफकेश के साइज पर पद का साइज डिपेंड करेगा। इसके लिये दास जी ने महीने में एक बार अपना बर्थडे मनाने का फैसला किया है। अरे यार, बिना किसी कारण आपको देने में शर्म आ सकती है। पैसा सीधे समीर भाई के कारपोरेट आफिस में ही जमा करा दें। दरअसल दास जी पैसे को हाथ नहीं लगाते। खैर आप लोगों को पार्टी का पद पैसा ट्रांसफर वाले दिन से मान्य होगा। धन्यवाद। जय भ्रष्टाचार, जय कमीशन। पार्टी का एजेंडा भाई भतीजावाद, जातिवाद, नस्लवाद। जिस वाद से मिले वोट वही स्वीकार्य।
पंकुल

रविवार, 15 मार्च 2009

आओ, पार्टी-पार्टी खेलें

दोस्तों, फोकटियों का मेला शुरू हो गया। अब न रहेगी मंदी और न नजर आयेगी बेरोजगारी। रोजाना दारू पी जाएगी और धड़ल्ले से बेरोजगारी दूर की जाएगी। वो तो आयोग विलेन बन गया वर्ना भाई लोगों के पास बांटने के लिये बहुत धन है। अरे पांच साल तक कमीशन यूं ही थोड़े ही खाया जाता है। कमीशन का बड़ा हिस्सा तो चुनाव में ही खर्च हो जाता है। भाई लोगों के दो नम्बर के धन से अगर किसी की दो-चार दिन चांदी हो रही है तो उसमें टांग नहीं अड़ानी चाहिए।
खैर ये बात तो उनकी है जो फोकटिये हैं। अपुन के दास जी के पास आज कल बिल्कुल फुर्सत नहीं है। सुबह से रात और रात से सुबह हो रही है। किसी ने पहला मोर्चा बनाया तो किसी ने दूसरा। अब पता नहीं पहला कौन है और दूसरा कौन। पर तीसरा मोर्चा बिल्कुल स्पष्ट है। जो एक दूजे के नहीं वो तीसरे के हैं। कई ऐसे भी हैं जो चौथे-पांचवें और छठे मोर्चे के होंगे। दास जी ने भी 1001 (एक हजार एक) वां मोर्चा बनाया है। भैया चौंकिये मत, दास जी तो गुंजाइश से ही काम करते हैं। पहले सब लोग एक -एक सीट वाले मोर्चा बनायें। उसके बाद भी कुछ बचें तो दो -तीन सौ मोर्चे बना लें। हम तो शगुन से चलते हैं। 1000 पर एक। पहले के 1000 मोर्चे बनने की गुंजाइश आपको नहीं लगती लेकिन दास जी लगती है। अरे एक-एक सीट पर चुनाव लड़ने वाले मोर्चा बनायें तो 545 मोर्चे बन जाएंगे। इसमें भी 455 सीटों पर फ्रेंडली फाइट हो सकती है। जब साइकिल वाले और हाथ वाले साथ-साथ चलकर भी दूर-दूर हो सकते हैं तो एक सीट वाले फ्रेंडली क्यों नहीं हो सकते। लड़ेंगे साथ और प्यार करेंगे साथ। एक पुराना गाना याद आता है,
हम ही से मोहब्बत
हम ही से लड़ाई
अरे मार डाला
दुहाई-दुहाई।
तीसरे मोर्चे वालों की कहानी तो और भी हिट है। तुम अपने घर में चौका करके आओ, हम अपने घर से रोटी बनाकर लायेंगे। बाद में साथ-साथ बैठकर खायेंगे। रोटियां कम पड़ीं तो पहले या दूसरे के घर पर खा आयेंगे। जो जितनी रोटियां सेक कर लायेगा उसे ही ताज पहना देंगे।
छोड़ों,हमें इन लोगों से क्या लेना-देना। अपन दास जी के मोर्चे की बात करते हैं। यहां किसी तरह का कोई डिस्प्यूट नहीं है। प्रधानमंत्री पद के दावेदार दास जी हो गये। चुनाव लड़ने के लिये सभी सीटें खाली पड़ी हैं जो चाहे टिकट ले जाए। समझौते में दास जी को एक भी सीट नहीं चाहिये। दास जी को चुनाव थोड़े ही लड़ना है। एक और महत्वपूर्ण बात। जरूरी नहीं चुनाव से पहले मोर्चा बने। चुनाव के बाद जीतने वाले दास जी के मोर्चे में शामिल हो सकते हैं। उनके मोर्चे के दरवाजे सभी के लिये खुले हैं। यहां साम्प्रदायिक, कम्युनिस्ट, कांग्रेस, गैर कांग्रेसी, समाजवादी, गैर समाजवादी, हार्ड कोर, साफ्ट कोर किसी से परहेज नहीं है। दास जी को सिर्फ सरकार बनानी है। दास जी अगर चुनाव लड़े तो यह सारे काम कैसे करेंगे। चुनाव के बाद अगर छह महीने से ज्यादा सरकार चली तो देखेंगे कोई जुगाड़।
रही बात पार्टी के एजेंडे की। यह बाद में बना लिया जाएगा। पार्टी की रीति, नीति बनाने के लिये दास जी कमेटी का गठन कर रहे हैं। इन सभी कमेटियों के अध्यक्ष दास जी ही हैं। पार्टी की सदस्यता के सभी दरवाजे खुले हैं। मोटा चंदा देने वालों को प्राथमिकता दी जाएगी। खास बात ये है कि सिर्फ चंदे की मोटाई देखी जाएगी, कहां स आया यह बात गौण है। पार्टी के सदस्य आप भी बन सकते हैं। आप चाहें तो चुनाव लड़ें टिकट पार्टी कार्यालय से प्राप्त की जा सकती हैं।
पंकुल

सोमवार, 9 मार्च 2009

होली के रंग

होली का त्यौहार अन्य त्यौहारों से पूरी तरह अलग है। पूरे भारत में जैसे होली मनायी जाती है उससे अलग होती है बृज की होली। बृज में होली के अनेक रूप सामने आते हैं। बरसाना में राधा रानी और उनकी सहेलियों के स्वरूप में श्रीजी धाम वृंदावन की हुरियारिनें नंदगांव के हुरियारों को लाठियों से मारती हैं। कभी यह खेल दूसरे रूप में होता होगा अब परम्परा का निवर्हन बहुत ही खूबसूरती से किया जा रहा है। बरसाना के बाद नंदगांव की बारी आती है और यहां जाते हैं बरसाना के छोरे। जो बरसाना में हुआ वही यहां होता है। होली में रंग डालाना, गुलाल लगाना आम बात है। पर लाठियों से स्नेह जताना अनूठा। नंदगांव में जहां लठामार होली होती है वहीं गोकुल में छड़ीमार। मान्यता है कि गोकुल में श्रीकृष्ण बाल रूप में रहे थे। यहां गोपियां छड़ी मारकर होली खेलती हैं। मथुरा जिले की छाता तहसील में फालैन गांव आज भी जलते अंगारों पर पण्डा के चलने के का गवाह है। यह क्षेत्र भक्त प्रह्लाद का क्षेत्र कहलाता है और यहां पण्डा होलिका दहन के बाद अंगारों पर चलता है। दुलहड़ी वाले दिन संत अपनी तरह से होली मनायेंगे और आम लोग अनी तरह से।
भैये ये सारी होली तो देखना और खेलना पर मजा चखना हो तो दौज (इस साल 12 मार्च) को बलदेव चले जाना। भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई महाबलशाली दाऊ की धरती की होली भी बलशाली ही होती है। यहां महिलाएं युवकों के कपड़े फाड़ती हैं और फिर मिट्टी में लटेपकर उसी कोड़े से पिटाई लगाती हैं। कोड़े खाकर भी लोग मस्त घूमते हैं। बलदेव क्षेत्र में गांव-गांव में यह होली होती है। कहीं कीचड़ फेंकी जाती है तो कहीं मिट्टी। दरअसल मान्यता है कि एक राक्षसी थी डुंडा। उसने उत्पात मचा रखा था। शिव जी से उसने वरदान भी लिया था। बाद में शिवजी ने उसके वरदान का उपाय बताया कि जो भी होली के बाद होलिका की राख मलकर डुंडा के सामने जाएगा उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा।
होली रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने का भी त्यौहार है। इस मौके पर मैंने एक कविता को दो अलग-अलग रूप में लिखने का प्रयास किया है।

होली

बिखरा न अबीर, गुलाल अभी
न किसी ने मारी पिचकारी
मैं कैसे मानूं साथी
आई होली आई।
चेहरे भी लगते जाने-पहचाने
होश अभी है बाकी
भीगा न तन तेरा
फिर कौन कहे होली आई।
खामोश हैं दिशाएं
चुप हैं हवाएं
दिखे तेरा उजला तन
ये कैसी होली आई।
इसी कविता का दूसरा रूप प्रस्तुत है।
हर दिशा कुछ बोल रही,
हर पेड़ की डाली झूम रही
हर तन में छायी है अजब सी मस्ती
लगता है गोरी होली आई।
मदहोश चाल
और उड़ता गुलाल
हर ओर नजर आये धमाल
अब लगा गोरी होली आई।
भीग रहा तेरा तन
पहचानों कैसे तेरी शक्ल
पचरंगी हुई तेरी चुनरिया
कौन कहे होली न आई।
पंकज कुलश्रेष्ठ
ये तो हो गयी बेकार की बात अब कुछ काम की बात हो जाए।
दोस्तों होली बड़ी मुश्किल से साल में एक बार आती है। अपन का बस चले तो साल में कम से कम पच्चीस तीस बार होली खेल ही लें। होली के बड़े फायदे हैं। खूब झिककर दारू पियो, भांग खाओ और जहां चाहो वहां लेट जाओ। बड़े-बूढ़े भी होली मानकर चुपचाप बैठे रहते हैं। अपने दास जी तो होली के बहाने न जाने क्या-क्या कर आते हैं। पूरे दिन घर नहीं आते और जब भौजी फुनवा मारती हैं तो चौंक पड़ते हैं अरे, साथ तुम नहीं हो। इतनी देर से मेरी गाड़ी पर कौन बैठा था। होली यूं तो प्यार मोहब्बत बढ़ाने का दिन है लेकिन आप दुश्मनी भी निकाल सकते हो। जिसे चाहो, उसे धुन आओ और कह दो भैये रंगा चेहरा पहचान नहीं पाया।
होली के बहाने आप लोगों के घर के सामान को भी स्वाहा करवा सकते हो। क्या जमाना था जब लोग घरों के दरवाजे तक उखाड़ ले जाते थे। होली को ट्रेनिंग प्वाइंट भी कहा जा सकता है। होली का काम चंदा वसूली से होता है और चंदा वसूली उम्र बढ़ने के साथ ही ज्यादा काम आने लगती है। कभी पार्टी के नाम पर चंदा तो कभी इलेक्शन के नाम पर चंदा। एक बार मांगना सीख गये तो जिन्दगी में कभी मात नहीं खाओगे।
पंकुल