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सोमवार, 31 दिसंबर 2018

दास जी का 'हनुमान' मर्म

दास जी पिछले एक महीने से बहुत गदगद हैं। हो भी क्यों नहीं, बात ही मन की हो गई। पूरा जमाना राम 'दास' की बात कर रहा है। दास जी के नाम में भले ही राम नहीं जुड़ा लेकिन आधा 'परमार्थ' उनके भी खाते में आ ही रहा है। दास जी भी कोई छोटी चीज नहीं, उन्होंने पूरे कर्म का मर्म भी समझ लिया। दरअसल अपने महाराज ने हनुमान जी को दलित नहीं कहा, उन्होंने दलितों को हनुमान बनाने का प्रयास किया। प्रभु श्रीराम अयोध्या के राजा था। श्रीराम की कृपा से हनुमानजी सीता मैया को खोजने लंका गए, रावण की सोने की लंका तक जला डाली। महाराज क्षत्रिय भी हैं, क्षत्रप भी और प्रांत राज भी। अब महाराज की भी...। वैसे पुराने जमाने में किसी ने गलत ही कहा है जाति न पूछा साधु की। 'भैया जाने लड़ी न चुनावी लड़ाई, वो क्या जाने जाति की महमाई'। यहां तो चुनाव के समय साधु भी लोधी, जाट, ठाकुर, ब्राह्मण... हो जाते हैं। लेकिन अब साधु की जाति से काम नहीं चलेगा तो भगवान की जाति बता देंगे। हनुमान जी को महाराज ने दलित बताया तो बहुतेरे लोग बाहें तान कर चले आये। मानो हनुमान जी न हुए वोट बैंक हो गए। किसी के लिए हनुमान जी जाट हैं तो कोई ठाकुर बता रहा है। मेरे हिसाब से हनुमानजी को सभी अपनी-अपनी जाति में लपेट लें। एक ही मंदिर में दस-बारह मूर्तियां लगा दो, नीचे लिख भी दो हनुमान सिंह, वर्मा, शर्मा...आदि-आदि। अकेले हनुमान जी को ही क्यों, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की भी जाति बता दो। दूसरे देवी-देवताओं की जाति भी बता दो। जाति ही क्यों, चुनाव में भी भी खड़ा कर दो। वैसे प्रभु श्रीराम तो बेचारे जब-तब चुनाव में खड़े ही कर दिए जाते हैं। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव। गांव-देहात तक के चुनाव में श्रीराम की साख दांव पर लगा दी जाती है। श्रीराम की कृपा से तो सरकारें बन गईं। भगवान भले ही टेंट में सर्दी से सिकुड़ रहे हैं लेकिन भाइयों को तो आलीशान महल मिल ही गए। इस बार भी भगवान का तंबू हटे न हटे, भाई लोग अपनी सरकार से कुहासा तो हटा ही लेंगे। वैसे हनुमान जी तो हैं ही साधु संत के रखवाले। तुलसीदास जी ने यह थोड़े ही कहा है कि सरकारी साधु संतों की रक्षा हनुमानजी नहीं करेंगे। ऐसा भी कोई प्रावधान नहीं है कि जो साधु एसी कार में घूमेंगे, एसी आश्रम में रहेंगे, जमीन-जायदाद इकट्ठी करेंगे उनकी रक्षा नहीं करेंगे। और जब सरकारी साधु-संतों की रक्षा हनुमानजी करेंगे तो सरकार की रक्षा भी तो उन्हें ही करनी होगी। महाराज ने अपने पड़ोसियों की लाज बचाने के लिए हनुमानजी को ललकार दिया, ये अलग बात है कि हनुमान जी... दूसरे पाले में चले गए। वैसे महाराज के निराश होने की कोई बात नहीं हैं, कवि ने कहा भी है, दुनिया चले न श्रीराम के बिना और रामजी चलें न हनुमान के बिना...। इस बार फिर ट्राई करना, लेकिन अधूरे मन से नहीं। हनुमानजी के साथ रामजी को भी जोड़कर ही चलना। वरना...

शुक्रवार, 5 मई 2017

बड़े खाइये, देशप्रेमी हो जाइए

एक बात पूछूं। बड़े अच्छे लगते हैं। अजी वही बड़े जो दही में डूबे रहते हैं। क्या लजीज आइटम है। ठंडे-ठंडे, सौंठ और दही पड़े ये बड़े क्या भाते हैं। बड़े तो जलजीरे में पड़े हुए भी अच्छे लगते हैं। छोटे-छोटे। क्या चटपटा स्वाद होता है। चटकारे लेते हुए पीने का मजा ही कुछ और है। वैसे छोटे हों या बड़े सभी को दही-बड़े, जलजीरे बड़े अच्छे लगते हैं। पर आप से पूछ रहा हूं, अच्छे लगते हैं या नहीं। अजी अच्छे लगते हैं तो कोई बात नहीं, बुरे लगते हैं तो आपको फिर सोचना होगा। बड़े तो बड़े हैं। बड़े दिल वाले हैं। इन्हें पसंद करना अति आवश्यक है। अगर बड़े आप पसंद नहीं करते तो आप देश भक्त नहीं हो सकते। आखिर जिस बड़े को सब लोग पसंद करते हैं आप देश द्रोही की तरह नापसंद करें, ये अच्छी बात नहीं। आप कह सकते हैं कि ये तो कोई तालमेल नहीं हुआ। कहां दही बड़े और कहां देश भक्ति। भाई तालमेल तो बहुत सी चीजों में नहीं होता। अब अगर सेविंग क्रीम के विज्ञापन में महिलाएं आ सकती हैं। जेंट्स कपड़ों का विज्ञापन लड़कियां करें तो आप दीदे फाड़-फाड़ कर देखें। अगर हम दही बड़े को देश प्रेम से जोड़ें तो वेबकूफ समझो। तालमेल तो इसका भी नहीं को लोग वोट मांगे और बात करें तीन तलाक की। चुनावी भाषण दें और बात करें पाकिस्तान की। अजी जब सब अपनी मर्जी से तालमेल बैठा सकते हैं तो मैं भी दही-बड़े को देश प्रेम से जो़ड़ सकता हूं। चलिए दही-बड़े खाइये।

रविवार, 24 जनवरी 2010

बेतुकीः आओ एक प्लेट शहर खायें

आपने मटर पनीर, कड़ाही पनीर, दम आलू, रोस्टेड चिकन, मटन बिरयानी, मुगलई चिकन, फिश फ्राई, आमलेट, पाव भाजी, चाऊमिन, मसाला डोसा खाया है। बिल्कुल खाया होगा, इसमें सोचने की क्या बात है। अगर आप परफेक्टली बेजीटेरियन हैं तो रोस्टेड चिकन, मटन बिरयानी आदि-आदि नहीं खाये होंगे। हम जैसे भारतीय पेटुओं के लिए ये आइटम होटल, रेस्टोरेंट, ढाबे, ठेल-ढकेल से लेकर घर तक एविलेबल हैं। पर आपने कभी शहर खाया है। अरे भाई शहद नहीं, शहर। क्या कहा नहीं। सवाल ही पैदा नहीं होता। आपकी प्लेट में रोजाना शहर का कोई न कोई टुकड़ा रहता है, आपने देखा नहीं होगा।
आइए एक प्लेट शहर खाने का तरीका बताते हैं। आप अधिकारी जी, क्लर्क जी, चपरासी जी, ठेकेदार जी, जनप्रतिनिधि जी, पुलिस जी हैं तो शहर खाने का पहला अधिकार आपका ही है। जन प्रतिनिधि जी के पास बहुत पैसा है। अधिकारी जी के पास बहुत पावर है और ठेकेदार जी के तो क्या कहने। मान लो सड़क बननी है है पांच मीटर चौड़ी तो अगर पौने पांच मीटर हो जाएगी तो आपको क्या फर्क पड़ेगा। सड़क में गिट्टी की मोटाई नौ इंच होनी है और यह तीन इंच रह जाए तो क्या फर्क पड़ेगा। अरे, नेताजी ने जीतने से पहले जो दारू पिलाई थी, टिकट पाने के लिए जो चंदा दिया, वोट खरीदने के लिए जो नोट दिये वो घर बेचकर तो लाएंगे नहीं। छह इंच गिट्टी में एक-डेढ़ इंच गिट्टी पर तो नेताजी का अधिकार है ही। अधिकारी जी पोस्टिंग के लिए जो जेब गरम करके आये वह शहर की गिट्टी, मिट्टी से ही कमा कर जाएंगे। बेचारे हर महीने चंदा भी तनख्वाह से कहां तक दें। जब चार कमायेंगे तो दो जेब में भी रखेंगे। भई इतना तो नैतिक अधिकार है। ठेकेदार बेचारा छुटभैये नेताओं की सुने, जनप्रतिनिधिजी की सुनें, अधिकारियों की सुने और अपने बच्चों का गला घोंट दे क्या। अरे, जब दुनिया को बांटेगा तो अपनों को डांटेगा क्या। क्लर्क जी से बड़ी पोस्ट दुनिया में कोई नहीं होती। ये तो गाड़ी का इंजन हैं। जब तक स्टार्ट नहीं होगा काम नहीं चलेगा। रही बात चपरासी जी की तो क्या बिना पहियों के गाड़ी चला लोगे।
अकेले सड़क क्या, विश्व बैंक से चंदा लाओ पहले बंदरबांट करो फिर थोड़ी लीपापोती कर दो। सरकारी जमीनों पर इमारतें खड़ी करवा दो। गंगा-यमुना की सफाई के नाम पर करोड़ों डकार लो। फैक्ट्रियों में मजदूर की मौत का सौदा कर लो। सेल्स टैक्स, इंकम टैक्स, वाटर टैक्स, हाउस टैक्स बचाओ। सड़क पर अतिक्रमण करो और से अनपी जायदात समझो। बिजली की चोरी करो और इंजीनियर साब को समझ लो। स्कूल की दुकान खोलो और विधायक, सांसद निधि का पैसा उसमें लगवाओ। नेताजी को खुश करो और अपनी जेब गरम करो। ट्रस्ट के नाम पर शिक्षा बेचो और धर्मार्थ के नाम पर स्वास्थ्य। ट्रस्ट बनाओ, धर्मार्थ का बोर्ड लगाओ और धड़ल्ले से मरीजों की जेब काटो। अपनी जेब से लगा रहे होते तो कमेटियों के झगड़े क्यों होते।
पुलिसजी की पोजीशन बहुत खराब है। एक पुरानी कहावत है, धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का। सिपाही जी दिनभर सड़क पर रास्ता दिखायें और कुछ कमायें नहीं। क्या धर्मशाला चलाने का ठेका इन्ही का है। भैये, ये तो गोबर हैं जहां गिरेंगे कुछ लेकर ही उठेंगे। आप पीड़ित हो या आरोपी, समझना तो पड़ेगा ही। आप सरकारी धन खाओ और समझ लो काम पूरा। आप घोटाला करो और सिपाहीजी, दरोगा जी को समझ लो। बाकी काम दरोगा जी का है, कुछ ऊपर देंगे और कुछ अपनी जेब में रखेंगे। आप खिलाते जाओ, वो खाते जाएँगे।
अब आयी शहर खाने की रेसिपी समझ में। अब देख लेना, शहर का कौन सा हिस्सा आपकी थाली में है। भाई पहले शहर खाओ और इतना खाओ कि प्रदेश और देश खाने की आदत पड़ जाए। आदमी पहले छोटा होता है फिर बड़ा काम करता है। देश खाओगे तो बड़े कहलाओगे।
चुटकी

अपने एक नेताजी देश खा-खाकर बीमार पड़ गये। अस्पताल पहुंचे तो डाक्टर ने परहेज बता दिया। नेताजी को भूख लगी तो कुछ इस तरह गाने लगे।
मेरा खाना क्यों नहीं आया
सबकी थाली सज चुकी है
मेरा मन खबराया।
मेरा खाना क्यों नहीं आया।
थोड़ी देर में उनका खाना आ गया, थाली देखकर नेताजी चकरा गये, बोले-
आज हमारे दिल में अजब ये उलझन है
खाने बैठे खाना, सामने शलजम है।
नेताजी फिर बोल उठे-
हटादो, हटादो, हटादो ये शलजम की
मुझे नहीं चाहिये ये सूखी रोटी
हटादो, हटादो...।
खैर नेताजी स्वस्थ हो गये। घर पहुंचे तो चमचों ने पार्टी रखी। पार्टी में नेताजी ने झिककर खाया-पिया और लगे झूमने।
बड़े दिनों के बाद मिले हैं ये आलू
मटर-पनीर, मुर्ग मुसल्लम और दारू।
जब दारू अंदर जाएगी तो मुर्गा मजा देगा।
मुर्गा मजा देगा और आलू मजा देगा।
पंकुल

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

अब कभी डायबिटीज को मत कोसना

अब कभी डायबिटीज को मत कोसना। भगवान हर मर्ज का इलाज पहले कर देता है। चीनी पेट्रोल की कीमत पर हुई तो क्या, डायबिटीज रोगियों की संख्या भी तो बढ़ रही है। रोजाना आप निखालिस चीनी की चाय पीओ पर घर आने वाले मेहमान को दो दाने चीनी डालकर ही चाय पिलाना। चाय की चुस्की के साथ एक लेक्चर भी दे सकते हैं। अरे भाई यह डायबिटीज भी बला की बीमारी है। छोटे-छोटे बच्चों को भी हो जाती है। डायबिटीज से किडनी फेल हो जाती है। डाक्टर कहते हैं बचपन से ही चीनी कम लेनी चाहिए। हो सकता है दूसरी बार मेहमान जब आये तो खुद ही फीकी चाय की कह दे।
वैसे लोग खामखां, चीनी को कोस रहे हैं। अरे यह कहिये महंगाई कम हुई है। बुजुर्गों ने कहा है बड़ी लाइन को छोटा करने के लिए छोटी लाइन को बढ़ाना चाहिए। अरहर की दाल 30 से नब्बे हुई तो लोग कहने लगे एक किलो अरहर खरीदने से अच्छा चार किलो चीनी ले आओ। अब कहो चार किलो चीनी ले आये। पहले भी दो किलो आती थी अब फिर दो किलो चीनी ही आयेगी। भाई मेरे जब गुड़ छलांग लगा रहा था तो कोई नहीं बोला। अब फिर सामाजिक समरसता स्थापित हो रही है। चीनी महंगी बिकेगी और गुड़ सस्ता। अरे, फिर गुड़ खाने वालों को सेकण्ड क्लास कैसे कहेंगे। आप चिन्ता मत करिये। अब शादी-ब्याह में एक औ स्टाल लगेगी। शुद्ध चीनी की। जाइये और जमकर फंकी मारिये। दो चार महीने का कोटा पूरा कर लीजिये।
अजी हर महंगाई बुरी नहीं होती। सबसे पहला फायदा तो ये होगा कि देश में डायबिटीज कंट्रोल प्लान खुद ही लागू हो जाएगा। दूसरा फायदा होगा मलावट नहीं होगी। गली मोहल्ले के हलवाई खोआ बचाने के लिये मिठाई में चीनी भर देते थे, अब नहीं डालेंगे। मतलब शुद्धता बढ़ेगी। बताइये, जिस महंगाई से लाभ हो वह देश हित में ही होगी। देश हित में अपना भी हित है। हां, कुछ नुकसान भी हो सकते हैं। परचून वालों को सावधान रहना होगा। अब हो सकता है कोई शटर काटकर दस किलो चीनी चोरी कर ले जाए। कहीं से 25-30 किलो चीनी चोरी हुई तो समझो डीवीडी की कीमत के बराबर चोरी। अगर दस बोरी चोरी हो गयीं तो मानो मोटर साइकिल चोरी हो गयी। अरे हिसाब क्या लगाने लगे, भैये हर साल एक-आध डीवीडी तो हलक के नीचे उतार ही रहे हो। नहीं समझे, भैया घर पर पांच साल चीनी नहीं लाओगे तो फ्रिज तो खरीद ही लोगे।
खैर, मेरा काम था सुझाव देना सो दे दिया। आप घर लुटाना चाहते हो तो लोगों को खूब मीठी चाय पिलाना। हां, अपना एडरस जरा इधर भी भिजवा देना। कभी मिलेंगे, आपके घऱ पर। हमारे यहां आओ तो फीकी चाय के साथ मुफ्त लेक्चर मिलेगा। मीठी चाय पीने का एक और आसान तरीका बताऊं। किसी को बताना मत। नेताओं और अधिकारियों से सम्बंध बढ़ा लो। वहां तो सौ रुपये किलो चीनी बिकेगी तो भी फर्क नहीं पड़ेगा। इधर चीनी, दाल महंगी उधर कमीशन बढ़ा।
पंकुल

मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

मैं कुत्ताः अगले जनम मोहे कुत्ता ही कीजो

एक बहुत पुराना गाना है, रास्ते का पत्थर किस्मत ने मुझे बनाया। अपने धरम पाजी बड़े सेड-सेड मूड में यह गाना गा रहे थे। आज उसी तर्ज पर अपना चीकू भी कुछ सेड मूड में किकिया रहा था। अरे चीकू, वही मोहल्ले का सबसे सीधी पूंछ वाला कुत्ता। आते-जाते हर कोई उसके लात मारकर चला जाता है और वो घुर्र करके, पूंछ दबाकर घिसक लेता है। मोहल्ले के तमाम कुत्ते उसकी इसी हरकत से परेशान हैं। सबसे ऊंची पूंछ के कद्दावर मोती ने कई बार कहा भाई थोड़ा ब्रेब बनो। यों धरम पाजी की मुद्रा में मत बैठो। पाजी तो एक बही फिलम में यह गाना गाकर लाखों कमा गये, तू अपनी इज्जत क्यों गंवा रहा है। वैसे भी पाजी अपने रोल माडल नहीं हैं। पाजी ने जाने कितनी फिल्मों में हमारा खून पिया। उन्हें कोई और तो मिलता नहीं, बस यही कहते रहते हैं कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा। हम कुत्ते न हुए कोल्ड ड्रिंक की बोतल हो गये।
खैर अपना और धरम पाजी का अलग मामला है। वो ठहरे स्टार और अपन रहे जमीन से जुड़े। पर यह मत समझना हमारे यहां स्टार नहीं होते। अपनी रीनी, वही शमार्जी वाली रीनी। बड़ी अच्छी किसम्त है उसकी। गाड़ी में घूमती है, बढ़िया-बढ़िया खाना खाती है। गोदी में टहलती है और अच्छे-अच्छे कपड़े पहनती है। खूबसूरत इतनी कि पूरा मोहल्ला उसे देखने को लालायित रहता है। कई बार तो पड़ोस के मोहल्ले के कुत्ते भी हमारे मोहल्ले में आ जाते हैं।
शर्माजी रीनी पर जान छिड़कते हैं। मजाल है रीनी जरा सा चोट पहुंच जाए। दो नौकर तो रीनी के लिये ही दौड़धूप करते हैं। कुत्ते, गाय, बंदर कोई भी उससे छेड़खानी नहीं कर सकते। शर्मा जी के बाबा ने घर के पिछवाड़े गाय के लिये जो कोठरी बनवाई थी अब उसी में रीनी की देखभाल करने वाले नौकर रहते हैं। रीनी के रहने के लिये शर्माजी का कमरा है। गाय पालने की फुर्सत अब शर्मा जी को कहां। कौन गोबर की दुर्गन्ध झेले। भैये जैसी किस्मत रीनी की है वैसी सबकी हो जाए। रीनी की तरह हम भी दूसरे देशों में जाकर घरों के अंदर रहकर नाम कमायें। अपन तो भगवान, अगले जनम कुत्ते ही बनें। जो आज रास्ते के कुत्ते हैं उनकी भी लाटरी एक-आध जनम बाद तो खुल ही जाएगी। अब सड़कों पर कुत्ते नहीं गाय रहेंगी।
पंकुल

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

काश अपन दस साल नये माडल होते

पता नहीं कब छह महीने बीत गये। ये मत समझना मैंने आपको याद नहीं किया। जब-तब आप लोगों के संदेश देख लेता था और अपने पुराने लेख पढ़ लेता था। हकीकत में कहूं तो कुछ आलस, कुछ व्यस्तता और कुछ देश की बिजली ने हमें इस हालत में पहुंचा दिया। रात को जब भी साढ़े ग्यारह बजे के बाद लेपटाप पर बैठने का प्रयास किया तो लाइट चली जाती। सुबह तो भैया देर से उठकर फिर वहीं रोजाना की भागदौड़ शुरू हो जाती। कई बार सोचा अब बैठें-अब बैठें पर बैठ नहीं पाये।
एक पुरानी कहावत है, उठी पैंठ सात दिन बाद ही लगती है। मतलब साफ है, एक बार किसी काम से थोड़ा सा जी चुराया नहीं कि दोबार खोमचा जमाने में समय लग जाता है। खैर, छह महीने में बहुत कुछ हो गया। होली के बाद जन्माष्टमी, दीवाली निकल गयी। हमारी नगरी के दो-दो सितारे बुलंदी तक पहुंच गये। पहले हंसी के गुब्बारे मोहित बघेल ने कलर्स चैनल पर हंसाया तो अब जीटीवी के लिटिल चैम्प बने मथुरा के हेमंत ब्रजवासी। टीवी पर आज कल बहुत से रियलिटी शो शुरू हो गये हैं। पहले हंसाने और गाने वाले का सलेक्शन होता था अब तो शादी के लिये भी पब्लिक की राय ली जा रही है। हंसिये नहीं, किसी समय में व्यंग्यकार जिस कल्पना को अपनी हंसी का पात्र बनाते थे वही अब साकार हो गयी है। अपनी राखी बहनजी पहले शादी के लिये स्वयंवर कर रही थीं फिर बच्चे खिलाने की प्रैक्टिस भी शुरू कर दी। यह अलग बात है स्वयंवर के बाद भी उनकी शादी नहीं हुई। अब दूल्हा-दुल्हन का सलेक्शन स्टार प्लस चैनल पर चल रहा है। हो सकता है कोई शुरू कर दे द परफेक्ट सन या परफेक्ट पैरेंट। एक तरफ लड़के-लड़कियां होंगे तो दूसरी तरफ बुड्ढे। पब्लिक ओपेनियन के आधार पर हर महीने एक बाप और एक बेटे को शो से आउट किया जाएगा। आखिर में बचेंगे परफेक्ट पेरेंट्स। शो खत्म होने के बाद तथाकथित बेटा कह सकता है मैं अभी कुछ दिन बाद मां-बाप का सलेक्शन करूंगा। वैसे बेटों को भले ही न हो, मां-बाप को आज परफेक्ट सन की जरूरत जरूर है। मौका मिलेगा तो लोग दूसरे के बेटों पर हाथ साफ कर देंगे। पहले कहा जाता था अपने बेटे और दूसरों की पत्नी हमेंशा अच्छे लगते हैं। अब यह कहावत पुरानी हो चुकी है। बचपन में सभी को अपने बेटे अच्छे लगते हैं और बाद में दूसरों के। मां-बाप का भी सलेक्शन हो सकता है। उसमें सेटिंग की जरूरत होगी।
वैसे अपने जमाने में अगर रियलिटी शो होते तो अपन भी एक अदद पत्नी का सलेक्शन कर लेते। अब मौका हाथ से चला गया। काश अपन दस साल नये माडल होते।
पंकुल

गुरुवार, 19 मार्च 2009

जय भ्रष्टाचार, जय भाई-भतीजावाद

भैये उडन तस्तरी। आपने पुरानी कहावत सुनी है, जो बोले सो कुंडी खोले। अरे पार्टी कार्यालय की कोई समस्या नहीं है इसे आपके यहां बना देंगे। ऐसा भी हो सकता है अपनी पार्टी का कारपोरेट कार्यालय आपके घर बन जाए। आप सोच रहे होगे, कारपोरेट कार्यालय की क्या जरूरत है। भैये समझाये देते हैं, दास जी आज के जमाने के पालिटीशियन है। हर काम का दाम फिक्स है।
जब दास जी की सरकार बन जाएगी तो काम कराने के ठेके इसी कारपोरेट आफिस से लिये जाएंगे। पुराने पालिटीशियन खामखा स्विस बैंक में पैसा जमा करके बदनाम हुए। उनकी भी कोई कमी नहीं थी। बेचारों पर इतना पैसा कहां था जो ज्यादा जमा करते। हजार-पांच सौ करोड़ से होता ही क्या है। दास जी ने फैसला किया है कि सभी मंत्रियों के पैसे लेकर एक अपना बैंक खोलेंगे।बैंक का हैड आफिस भी इसी कारपोरेट आफिस में होगा। और भैये आप तो बैंक के डायरेक्टर हो गये। इसके अलावा भी जो पद चाहोगे दे देंगे, पर प्रधानमंत्री की ओर आंख भी मत उठाना। वो पद दास जी के लिये रिजर्व है। इसमें न नम्बर गेम है और न ही मनी गेम।घबराइये नहीं, दास जी के यहां देशी-विदेशी का मुद्दा नहीं है। आप अपने आस-पास के लोगों को इस पार्टी फंड से जोड़ सकते हैं। आगे जो सड़क, पुल के ठेके दिये जाएंगे उसमें सब कुछ एडजस्ट हो जाएगा। जो कुछ नहीं बनाता उसको कंसलटेंसी एजेंसी के नाम पर समझ लिया जाएगा। आप कहोगे तो ताऊ-बाऊ को भी फिट कर लिया जाएगा।
दास जी गांधी वादी हैं। ईश्वर अल्लाह तेरे नाम। दास जी ने इसमें जोड़ा है अमेरिका हो या हिन्दुस्तान, सबका कमीशन दे भगवान। महामंत्री जी, आप नाम से ही महामंत्री ठहरे। पर ध्यान रखना, पदांवटन से लेकर कुर्सी आवंटन तक बिना पैसे के नहीं चलेगा। हमने यह प्रेक्टिकल अपने यहां कर रखा है। जितना बड़ा पद, उतनी मोटी दक्षणा। ब्रीफकेश के साइज पर पद का साइज डिपेंड करेगा। इसके लिये दास जी ने महीने में एक बार अपना बर्थडे मनाने का फैसला किया है। अरे यार, बिना किसी कारण आपको देने में शर्म आ सकती है। पैसा सीधे समीर भाई के कारपोरेट आफिस में ही जमा करा दें। दरअसल दास जी पैसे को हाथ नहीं लगाते। खैर आप लोगों को पार्टी का पद पैसा ट्रांसफर वाले दिन से मान्य होगा। धन्यवाद। जय भ्रष्टाचार, जय कमीशन। पार्टी का एजेंडा भाई भतीजावाद, जातिवाद, नस्लवाद। जिस वाद से मिले वोट वही स्वीकार्य।
पंकुल