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शनिवार, 31 जनवरी 2009

बसन्त

सुन चांदनी
मेरे आंगन में
सांझ ढले रात में
छिपकर किरणों से रवि की
तू एक बार आना।
ओ बदरिया
मेरी राह में
सूरज की आड़ में
मोरों की झनकार लिए
तुम मिल जाना।
ऐ हवा
मेरे गांव की चौपाल पर
फागुन की रात में
महक लिये साथ में
तू चली आना।
अरे बसन्त
चांदनी रात में
बदरिया की छांव में
बगियन की खुशबू लिये
मेरा मन आंगन महका जाना।
अरे बसन्त, ऐ बसन्त तू ही आना
हां तू ही आना।।
पंकज कुलश्रेष्ठ