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सोमवार, 21 जुलाई 2008

बेतुकीःकाश हम भी मोहल्ला सांसद होते

भाई मेरे हमें अपनी और अपने जैसे करोड़ों लोगों की औकात अच्छी तरह मालूम है। अपन सांसद तो क्या सभासद का चुनाव भी नहीं जीत सकते। औकात भले ही गिरी हो लेकिन सपना किसी से कम नहीं। भैये हमारा भी सपना है कोई भोज पर बुलाये। फाइव स्टार होटल न सही मोहल्ले के ढाबे पर ही दावत दे दे। छप्पन भोग न सही दाल रोटी ही खिला दे।
हमारे जैसे भुक्खड़ों के लिये सरकार को संविधान ही बदल देना चाहिए। हर मोहल्ले में एक हो और उस संसद में हम जैसों को बिना जीते ही शामिल किया जाए। एक बार मोहल्ला संसद में हमें घुस जाने दो। हर हफ्ते अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाये तो हमारा भी नाम नहीं। कम से कम हफ्ते में दो-तीन दिन खाने-पीने की जुगाड़ तो बनेगी। सौ-पचास रुपये मिल गये तो बच्चों की मिठाई आ जायेगी। अब मोहल्ला संसद में कोई पच्चीस-पचास करोड़ रुपये देने से तो रहा। जैसी औकात वैसा ही सपना देखना चाहिए। मोहल्ला संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाने के मुद्दे मैं बताये देता हूं। मोहल्ले के किसी कुत्ते के काटने की प्रवृत्ति को मुद्दा बनाया जा सकता है। कुत्ता नहीं काटता यह भी अपने आप में बड़ा मुद्दा हो जायेगा। अरे भाई कुत्ता है तो उसका फर्ज बनता है कि कुछ लोगों को काटकर अपने दांत पैने करे। ये तो रही कुत्ते की बात। मुद्दा और भी कोई बनाया जा सकता है। आपके मोहल्ले में कुत्ते नहीं हैं तो उनको आयात करने की डिमांड की जा सकती है। पड़ोस में अच्छे कुत्ते हैं तो उनकी बुराई की जा सकती है। आप सोच रहे होंगे कि भला ये भी कोई मुद्दे हैं।
भैये मुद्दे ऐसे ही होते हैं। बड़े लोगों में भी ऐसे ही मुद्दों का चलन है। जिन्हें परमाणु का मतलब नहीं मालूम वो परमाणु करार पर टिप्पणी कर रहे हैं। भाई जान हमें अपने मोहल्ले की चिंता नहीं तो वो अपने देश की चिंता क्यों करें। हमारे मोहल्ले के लोगों को जब कुत्ते के काटने और न काटने से कोई मतलब नहीं तो वो परमाणु करार से मतलब क्यों रखें। मुद्दा तो सिर्फ विरोध का है। जब बड़ी औकात वाले खाने और जेब भरने का काम कर रहे हैं तो भाई अपन को क्यों डांटते हैं। हमारा भी हक मोहल्ला संसद बनाने का। आओ संकल्प लें, बड़े लोगों को नक्शे कदम पर चलकर अपनी तरक्की करने का। विश्वास, वफा, धर्म, ईमान सिर्फ कुत्तों के लिये छोड़ दो।
पंकुल

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