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मंगलवार, 22 जुलाई 2008

बेतुकीःईमानदारी जिंदाबाद

भगवान का लाख-लाख शुक्र है ईमानदारी जीत गयी। बड़े-बड़े लोगों ने कोशिश की लेकिन भाई लोग अपने ईमान पर फेवीकोल के पक्के जोड़ से चिपके रहे। अंतरात्मा से आवाज आयी और सरकार बच गयी। अब भैया अंतरात्मा सिर्फ ईमानदारी पर बोलती है। लोग भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार का नारा दे रहे हैं लेकिन अपन ईमानदारी से सिद्ध कर सकते हैं ईमानदारी जिन्दाबाद रही। अगर ईमानदारी नहीं होती तो भला एक करोड़ रुपया लेकर माननीय कैसे पहुंच जाते। भैया एक करोड़ की औकात होती है। इतनी गड्डियां देखकर अच्छे-अच्छों की जीभ लपलपाने लगती है। ये अलग बात है कि नीलामी की बोली 25 करोड़ प्रति नग के हिसाब से लग रही थी तो माननीय एक करोड़ लेकर ही क्यों पहुंचे। बाकी का 74 करोड़ अंतरात्मा के पास पहुंच गया। वैसे खरीरददारों को सोचना चाहिए सिर्फ एक करोड़ तीन लोगों को देंगे तो झगड़ा तो होगा ही। ऐसे मामलों में एडवांस बुकिंग नहीं होती है। यहां तो तुरंत खलास किया जाता है। भला माननीय एडवांस से काम कैसे चला लेते। जैसा कर्म करेगा वैसा फल मिलेगा। ईमानदारी का दूसरा उदाहरण अपने हरियाणा के माननीय का है। कभी हाथ तो कभी हाथी से खेल रहे बेचारे की अंतरात्मा सही समय पर कचोटने लगी। हाथ और हाथी में भले ही बड़ी ई की मात्रा का अंतर है लेकिन हाथी गन्ना खाता है, पेड़ पौधे खाता है और हाथ हरे-हरे नोट बांटता है। हाथी पीठ पर सवारी करा सकता है लेकिन हाथ आखिर हाथ होता है। एक पुरानी कहावत है, अक्ल बड़ी कि भैंस। लेकिन कभी कोई यह भी कह सकता है हाथ बड़ा कि हाथी।खैर अंत भला तो सब भला। यूं भी कह सकते हैं बिके तो बिके बचे भी खूब। या समझ लो ईमान-धरम की लोगों ने खा ली। कसम से ऐसे ही लोग बिकते रहे तो ईमान को कभी खतरा हो ही नहीं सकता। एक बात और सिद्ध हो गयी, जिसकी लाठी उसकी भैंस। भैंस के बारे में एक और कहावत है, गोबर अगर मिट्टी से उठेगा तो लेकर ही उठेगा। अरे यह मत पूछना इस कहावत में भैंस कहां है। भैया अगर भैंस नहीं होगी तो गोबर कहां से आयेगा।चलो ईमानदारी का आखिरी उदाहरण और सुन लो। कमल वालों का भरा-पूरा खानदान ईमानदारी की भेंट चढ़ गया। बेचारे हैं भी बहुत धरम-करम वाले। हमेशा मंदिर, धरम की बात करते हैं और धरम के लिये ही सब कुछ कर लेते हैं। बकिया लोगों की क्या कहें, उनका ईमान तो जहां तहां वहीं है। वैसे सरकार को अन्य उद्योगधंधों की तरह इस खरीदो-बेचो धंधे का राष्ट्रीयकरण कर देना चाहिये। हर साल दो-चार बार इसकी जरूरत पड़ सकती है। इसके लिये अपने समाजवादियों से रिक्वोएस्ट की जा सकती है कि वह इस कार्यक्रम की जिम्मेदारी ले लें।
पंकुल

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

u r right Pankul,Imandari abhi jinda hai and our Manniya's Imandar for coming election and u indian CHOTA AADMI always look for there bad things,dont u know from where they will spend 5 to 10 carore??This is time to arrange money and vote cost is very less in india.

Unknown ने कहा…

u r right Pankul,Imandari abhi jinda hai and our Manniya's are Imandar for there coming election and u indian CHOTA AADMI always look for there bad things,dont u know from where they will spend 5 to 10 carore??This is time to arrange money and vote.