भैये एक बुरी खबर है। मुझे समझ नहीं आ रहा कोई हमारी तरक्की क्यों नहीं देखना चाहता। अरे बड़ी मुश्किल से आबादी बढ़ाने में हम नम्बर एक होना चाह रहे थे। जाने कितने प्रयास नहीं किये आबादी को चीन से आगे करने में। हमारा सपना था जल्द हम नम्बर एक होंगे। वो दिन भी दूर नहीं था जब हमारा सपना साकार होता। पर देखो अमेरिकनों को, अब वो भी दौड़ में आने लगे हैं। अरे अभी शुरूआत की तो क्या, हमें विश्वास है कि हम दौड़ते ही रह जाएंगे और बड़े भाई अमेरिकी नम्बर एक हो जाएंगे। अपने हाथ से दो नम्बर का तमगा भी छिन जाएगा।
आपको यह मसखरी लग रही है। भैया बिल्कुल सच्ची बात है। तेई सौं। तेई सौं का मतलब नहीं जानते, भैया तुम्हारी सौगंध। अपनी सौगंध मैं क्यों खाऊं। आज की दुनिया में किसी का भरोसा नहीं। पता नहीं वो अपने कार्यक्रम में पिछड़ जाएं और हम निपट लें। नहीं, इतना रिस्क नहीं ले सकता। खैर बात चल रही थी अपना औहदा गिरने की। आपको बताये देता हूं, मैंने सुना है इस साल अमेरिकियों ने साठ साल पुराना रिकार्ड तोड़ दिया। इस साल जितने बच्चे अमेरिका में पैदा हुए उतने सिर्फ दूसरे विश्व युद्ध के बाद पैदा हुए थे। इसका साफ मतलब है कि जब-जब अमेरिकी डरते हैं तो आबादी भी बढ़ाना शुरू कर देते हैं।
मुझे तो पहले ही मालूम था बड़े भाई कोई गुल खिला सकते हैं। अरे पहले हमारे खाने पर नजर लगायी और अब खाने में ही चुनौती देने आ रहे हैं। भैया, हमसे कहा गया दुनिया में महंगाई इसलिये बढ़ रही है क्योंकि हम ज्यादा खाते हैं। हमारे यहां ज्यादा खाद्यान्न खा लिया जाता है। हमारा भरा-पूरा पेट बड़े भाई से देखा नहीं जा रहा। हमें खाता देख उन्हें डर सताने लगा। अरे हम तो अपनी ही कमाई खा रहे हैं। घर में अनाज पैदा करते हैं खा लेते हैं। उनके यहां से कुछ मंगाया तो उन्होंने कौन सा बढ़िया माल भेज दिया। उस पर भी पूरे पैसे दिये, कोई चीज खैरात में नहीं भेज दी। हम गेहूं खायें, चाहें तेल खायें उनको क्या।
हमारी आबादी ज्यादा थी तो हमने कुछ मांगा तो नहीं। आजाद देश में हमने सिर्फ आबादी, महंगाई बढ़ायी। आबादी बढ़ी तो वोट बढ़े और महंगाई बढ़ने पर विपक्षियों के बल्ले-बल्ले। हमने कभी कहीं और बड़े भाई से कुछ मांगा। एक करोड़ की आबादी होते हुई भी कभी बड़े भाई ने ओलिम्पक में अपने तरफ से कोई मैडल भेंट किया। अरे उनका फर्ज बनता था हमें बिना जीते ही गोल्ड मैडल दें। रिजर्वेशन के हिसाब से तो हमें दस-बारह गोल्ड मिलने चाहिये। सुरक्षा परिषद के लिये हम कबसे रिरिया रहे हैं लेकिन बड़े भाई ने कभी अपना फर्ज अदा किया। हमने खाना खाया तो उन्होंने मुहं बिचका लिया। भैये हम जानते हैं वो आबादी भले ही न बढ़ायें लेकिन अपने खाने पर तो उनकी नजर लग ही गयी है।
अरे गनीमत मानो हमने अपने यहां के हजारों लाल अपने बड़े भाइयों को बांट दिये वरना अपन भी किसी से कम नहीं। अपने भारत यानि मनोज कुमार ने चीख-चीखकर बता दिया दुनिया को दशमलव हमने ही दिया। जीरो हमने दिया। तभी तो हर जगह दशमलव और जीरो लगाकर ही अपना काम चला रहे हैं।
पंकुल
pankul
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1 टिप्पणी:
पंकजजी, हंस हंस कर लोटपोट हो गए..
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