सावन और भादों, बरसात का मौसम। बड़े शहरों की तो नहीं मालूम लेकिन छोटे शहरों के लिए बारिश अक्सर मुसीबत लेकर ही आती है। हर बार बारिश और हर बार सड़कों पर भरने वाला पानी। इस पानी, यों कहें गंदे और नाले के पानी में बच्चों का कूदना और नहाना। सफाई की दृष्टि से इसे कतई उचित नहीं कहा जा सकता लेकिन.....
अंतर
ये झोपड़ियों में रहने वाले,
बरसाती नालों में नहाने वाले लोग,
हमसे तो कहीं बेहतर हैं।
पानी में बंद होने वाली गाड़ियों
नाले में डगमग कर गिरने वाले
बूढ़े और बच्चों को
ये खुद
बाहर निकाल लाते हैं
गंदे पानी में ये मन का मैल
पूरी तरह धो डालते हैं
पर एक हम हैं
कोठियों और बंगलों में रहने वाले
गंगा के साफ पानी में नहाकर
अपाहिज और लाचारों से बचते हुए
मंदिर का रास्ता ढूंढते हैं
कहीं वो हमसे छू न जाएं
हम साफ पानी में नहाकर भी
मन साफ नहीं कर पाते हैं
हमसे तो अच्छे वो हैं
जो गंदे पानी में नहाते हैं।
ये झोपड़ियों में रहने वाले,
बरसाती नालों में नहाने वाले लोग,
हमसे तो कहीं बेहतर हैं।
पानी में बंद होने वाली गाड़ियों
नाले में डगमग कर गिरने वाले
बूढ़े और बच्चों को
ये खुद
बाहर निकाल लाते हैं
गंदे पानी में ये मन का मैल
पूरी तरह धो डालते हैं
पर एक हम हैं
कोठियों और बंगलों में रहने वाले
गंगा के साफ पानी में नहाकर
अपाहिज और लाचारों से बचते हुए
मंदिर का रास्ता ढूंढते हैं
कहीं वो हमसे छू न जाएं
हम साफ पानी में नहाकर भी
मन साफ नहीं कर पाते हैं
हमसे तो अच्छे वो हैं
जो गंदे पानी में नहाते हैं।
पंकज कुलश्रेष्ठ
7 टिप्पणियां:
हम साफ पानी में नहाकर भी
मन साफ नहीं कर पाते हैं
हमसे तो अच्छे वो हैं
जो गंदे पानी में नहाते हैं।
" ah! very well described, very painful and touching"
REgards
क्या बात है ?
हम साफ पानी में नहाकर भी
मन साफ नहीं कर पाते हैं
हमसे तो अच्छे वो हैं
जो गंदे पानी में नहाते हैं।
वाह ! बहुत बढ़िया और सत्य लिखा है.
संवेदना से भरी रचना..बहुत ही अच्छा लिखा है आपने!!!!!!!
पर एक हम हैं
कोठियों और बंगलों में रहने वाले
गंगा के साफ पानी में नहाकर
अपाहिज और लाचारों से बचते हुए
मंदिर का रास्ता ढूंढते हैं
कहीं वो हमसे छू न जाएं
- अच्छी बात।
क्या बात हे आप की कविता मे , एक सच कह दिया.... धन्यवाद
हम साफ पानी में नहाकर भी
मन साफ नहीं कर पाते हैं
हमसे तो अच्छे वो हैं
जो गंदे पानी में नहाते हैं।
sundar...
behatarin....
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