कसम से, तुम्हारी बहुत याद आती है। बिल्कुल हर्ट से कह रहा हूं। यों भी कह सकता हूं, तुम्हारी याद में आंसू बहा रहा हूं। अपने प्रियजनों की तरह हर साल तुम्हारी याद करता हूं। दर्जन, दो दर्जन लोगों से तुम्हारी तारीफ भी करता हूं। पर मुकेश का एक गाना मेरे रग-रग में बसा हुया है। जो चला गया उसे भूल जा। मैंने इसी लिए तुम्हें हमेशा भूलने की कोशिश की। मैं जानता हूं जाने वाले कभी लौट कर नहीं आते। पर रस्मों-रिवाज भी टाले नहीं जा सकते हमने आज भी यही कहा, ओ जाने वाले हो सके तो लौट कर आना।
इन्हीं रस्मो-रिवाज के बीच जब हमें चार लोगों के बीच भषणियाना पड़ा तो बहुत डिफीकल्टी फील हुआ। पर हमने भी शुरूआत से ही जो कहा, सभी वैरी गुड-वैरी गुड कहते नजर आये। हमने शुरूआत की, आई लव हिन्दी। नेचुरियली हिन्दी, हिन्दुस्तान की लेंग्वेज है। हम सभी लोगों को हिन्दी को प्रमोट करना ही चाहिए। कम से कम एक दिन तो हम हिन्दी की याद में बिता ही सकते हैं। आई फील, हिन्दी में डेली काम करना परेशानी का सबब हो सकता है। आज हमें विश्व में तरक्की करनी है तो अंग्रेजी को भी उतना ही सम्मान देना होगा। बट, ऐसा नहीं कि अंग्रेजी बोलने से हिन्दी का अस्तित्व खत्म हो जाएगा।
इसी बीच वहां बैठे मेरे अजीज ने मेरा समर्थन किया। बोले, कम से कम अपने मजदूरों से बात करते वक्त तो हमें हिन्दी में ही बात करनी चाहिए। तभी एक भाई बोले,सर क्या बतायें, हिन्दी बहुत ही फनी लेंग्वेज है। मैंने तो अपने बच्चों को भी कहा है कि हिन्दी जरूर सीखें। मेरी बिटिया बता रही थी ट्रेन को लौह पथ गामिनी कहते हैं। मीटिंग में बैठे सभी दोस्त एक साथ बोले व्हाट फनी। आओ चलो अब मीटिंग को खत्म कर दिया जाए।
लास्ट में वी आल लव हिन्दी। जोर से कहो, वी आल लव हिन्दी।
थैन्क्यू।
और अंत में, मैं जब इंटर में पढ़ता था तो मेरे एक मित्र ने दो पंक्तियां सुनायी थीं। इन पंक्तियों के लेखक से अनुमति सहित यहां प्रस्तुत करना चाहूंगा
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दीजैसे प्रश्नवाचक चिन्ह के नीचे लगी बिन्दी
पंकुल
pankul
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8 टिप्पणियां:
अजी आप क लेख बडा धासू हे ओर लास्ट में वी आल लव हिन्दी। जोर से कहो, वी आल लव हिन्दी।** लेकिन मे तो प्यार ओर मान से कहुगां मे अपनी बाषा को अपनी हिन्दी को प्यार करता हू
पंकज भाई,
कमल का व्यंग है....सच आज हिन्दी की हालत ऐसी ही हो गई है !
हिन्दी की स्थिति पर अच्छा व्यंग्य है।
भाई मजा आ गया। कमाल के लिक्खाड् हैं आप।
प्रियवर पंकज जी,
आगरा में पंकुल को पढ़ते थे। मथुरा जब से गए तो पढ़ना ही भूल गए। ब्लॉग ने फिर से जोड़ िदया है। आशा करते हैं िक पंकुल ऐसे ही िलखता रहेगा और हम पढ़ते रहेंगे।
शुभकामनाएं स्वीकार करें पंकुल जी
डॉ. भानु प्रताप िसंह
chaliye aaj aapne v use yaad kar hi liya . waise ab wo majbut hai or ugate suraj ko to savi salam karten hain. aage- aage dekhiye hota hai kya.
vyangya ka put shaandaar hai,
par hindi ka abhimaan hai.........
अच्छा है
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