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गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008

मृग मारीचिका

दुनियां के इस रेगिस्तान में
ये मेरे निसां
आंधी के इक झोंके में
मिट जाएंगे।
फिर रह जायेगी इक सूनी जमीं
और चतुर्दिशा में बढ़ता
अंजान लोगों का काफिला
जो छूना चाहता है
वह मृग मारीचिका
जिसकी तलाश में मैंने
उम्र तमाम की।
और न जाने कितने लोग
दफन हैं इस रेगिस्तान में।
पंकज कुलश्रेष्ठ

2 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप सभी को दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं

Asha Joglekar ने कहा…

बहुत सुंदर । हमारे पाँवों के निसान हमारे सामने ही मिट जाते हैं अब तो ।