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सोमवार, 31 दिसंबर 2018

दास जी का 'हनुमान' मर्म

दास जी पिछले एक महीने से बहुत गदगद हैं। हो भी क्यों नहीं, बात ही मन की हो गई। पूरा जमाना राम 'दास' की बात कर रहा है। दास जी के नाम में भले ही राम नहीं जुड़ा लेकिन आधा 'परमार्थ' उनके भी खाते में आ ही रहा है। दास जी भी कोई छोटी चीज नहीं, उन्होंने पूरे कर्म का मर्म भी समझ लिया। दरअसल अपने महाराज ने हनुमान जी को दलित नहीं कहा, उन्होंने दलितों को हनुमान बनाने का प्रयास किया। प्रभु श्रीराम अयोध्या के राजा था। श्रीराम की कृपा से हनुमानजी सीता मैया को खोजने लंका गए, रावण की सोने की लंका तक जला डाली। महाराज क्षत्रिय भी हैं, क्षत्रप भी और प्रांत राज भी। अब महाराज की भी...। वैसे पुराने जमाने में किसी ने गलत ही कहा है जाति न पूछा साधु की। 'भैया जाने लड़ी न चुनावी लड़ाई, वो क्या जाने जाति की महमाई'। यहां तो चुनाव के समय साधु भी लोधी, जाट, ठाकुर, ब्राह्मण... हो जाते हैं। लेकिन अब साधु की जाति से काम नहीं चलेगा तो भगवान की जाति बता देंगे। हनुमान जी को महाराज ने दलित बताया तो बहुतेरे लोग बाहें तान कर चले आये। मानो हनुमान जी न हुए वोट बैंक हो गए। किसी के लिए हनुमान जी जाट हैं तो कोई ठाकुर बता रहा है। मेरे हिसाब से हनुमानजी को सभी अपनी-अपनी जाति में लपेट लें। एक ही मंदिर में दस-बारह मूर्तियां लगा दो, नीचे लिख भी दो हनुमान सिंह, वर्मा, शर्मा...आदि-आदि। अकेले हनुमान जी को ही क्यों, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की भी जाति बता दो। दूसरे देवी-देवताओं की जाति भी बता दो। जाति ही क्यों, चुनाव में भी भी खड़ा कर दो। वैसे प्रभु श्रीराम तो बेचारे जब-तब चुनाव में खड़े ही कर दिए जाते हैं। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव। गांव-देहात तक के चुनाव में श्रीराम की साख दांव पर लगा दी जाती है। श्रीराम की कृपा से तो सरकारें बन गईं। भगवान भले ही टेंट में सर्दी से सिकुड़ रहे हैं लेकिन भाइयों को तो आलीशान महल मिल ही गए। इस बार भी भगवान का तंबू हटे न हटे, भाई लोग अपनी सरकार से कुहासा तो हटा ही लेंगे। वैसे हनुमान जी तो हैं ही साधु संत के रखवाले। तुलसीदास जी ने यह थोड़े ही कहा है कि सरकारी साधु संतों की रक्षा हनुमानजी नहीं करेंगे। ऐसा भी कोई प्रावधान नहीं है कि जो साधु एसी कार में घूमेंगे, एसी आश्रम में रहेंगे, जमीन-जायदाद इकट्ठी करेंगे उनकी रक्षा नहीं करेंगे। और जब सरकारी साधु-संतों की रक्षा हनुमानजी करेंगे तो सरकार की रक्षा भी तो उन्हें ही करनी होगी। महाराज ने अपने पड़ोसियों की लाज बचाने के लिए हनुमानजी को ललकार दिया, ये अलग बात है कि हनुमान जी... दूसरे पाले में चले गए। वैसे महाराज के निराश होने की कोई बात नहीं हैं, कवि ने कहा भी है, दुनिया चले न श्रीराम के बिना और रामजी चलें न हनुमान के बिना...। इस बार फिर ट्राई करना, लेकिन अधूरे मन से नहीं। हनुमानजी के साथ रामजी को भी जोड़कर ही चलना। वरना...

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