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शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2008

पुज गये महाशय

पुज गये महाशय। सौभाग्य की बात है हर विलुप्त प्राय वस्तु की तरह आपका का भी एक दिन आ ही जाता है। सुबह से इठलाने का आनंद ही कुछ निराला है। शाम हुई और भूखी-प्यासी पत्नी ने जब चंद्रमा को याद किया तो आप साक्षात सिर से पांव तक कांप गये होंगे। जब पत्नी ने आपके पांव छुये होंगे तो आपका रोम-रोम सिहर गया होगा। ऐसा ही होता है। जब अचानक खुशी किसी को मिले तो यह आभास स्वाभाविक है। महाशय, साल भर पर्यावरण दिवस, साक्षरता दिवस , हिन्दी दिवस और न जाने कितने-कितने दिवस मना डालते हैं तब कहीं जाकर यह अनुभूति देने वाला दिवस आता है। कहते हैं, घूरे के दिन भी फिरते हैं। सो अपने और आपके भी हर साल एक दिन ही सही फिर ही जाते हैं। शायद इसी दिन को देखकर किसी ने पति परमेश्वर की कहावत का ईजाद कर दी होगी।
कुछ भाभियों, आंटियों को दिक्कत होती है कि पति के पूजन का दिन तो भगवान ने बना दिया, पत्नी पूजन का क्यों नहीं। भैये उन आंटियों और भाभियों को मेरा नमन। पर कभी सुना है कि सांस लो दिवस मनाया जाए। कोई खाना खाओ दिवस या स्नान दिवस आदि भी कभी मनाता है। यह सारे कार्य नित्य हैं। बेतुकी महा ग्रंथ में भगवन दास जी ने स्पष्ट किया है कि जो चीज नित्य-निरंतर है उसका दिवस मनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। जिसकी उपलब्धता खतरे में हो उसको याद रखने के लिये साल में एक दिन निर्धारित करना धर्म परक है।
वैसे महाशय, मेरा एक सुझाव है। पुजने की परम्परा तो ठीक पर ज्यादा कड़ाई से पेश मत आना। आप तो एक दिन के परमेश्वर ठहरे, 365 दिन का परमेश्वर भी ज्यादा कड़ाई नहीं बरतता। कहीं ऐसा न हो सौ सुनार की और एक लुहार की। आशय समझ ही लिया होगा। भविष्य में ध्यान रखिये और साल में एक दफा पुजते रहिये।
पंकुल

3 टिप्‍पणियां:

अमित अग्रवाल ने कहा…

ha ha ha!!!
majedaar, uttam, badhiya

राज भाटिय़ा ने कहा…

बेतुकी भाई आज आप की पुजा हुयी की नही, आप के लेख से लगता है, आप पहले पुजा करवा चुके है, तभी तो सुन्दर सी पुजनीया लेख लिख दिया, साबधान करने के लिये धन्यवाद

विक्रांत बेशर्मा ने कहा…

पंकज भाई,बेतुकी महाग्रंथ के इस महान ज्ञान से परिचित कराने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ....बहुत ही अच्छा लेख लिखा है आपने ...शुभकामनाएं !!!!!!