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शनिवार, 18 अक्तूबर 2008

मैं कुत्ता(3)- क्षेत्रवाद हमारी पहचान






दोस्तों बहुत दिनों के बाद मुलाकात हो रही है। हम कुत्तों की आदत ही कुछ ऐसी है कि जहां एक बार पंजों से मिट्टी उड़ाकर बैठे तो झपकी लग ही जाती है। खैर बात हो रही थी हमारी कुत्तानीयत की। अरे जब इंसानों की नीयत को इंसानीयत कहते हैं तो कुत्तों की नीयत को और क्या कहेंगे। हम कुत्ते सदा से क्षेत्रवादी रहे हैं। इसे दूसरी तरह ऐसे भी समझा जा सकता है कि हम कुत्ते विस्तारवादी नहीं होते। एक मोहल्ले से निकलकर हम ज्यादा इधर-उधर भागते ही नहीं है। जब जाते भी हैं तो दूसरे कुत्ते टांग खिंचाई कर देते हैं।


इंसानों में यह सगुण हम से ही ट्रांसफर हुआ। हर कोई अपने ही मोहल्ले में घूमता है। जिस इंसान को जिस विभाग में ठेके लेने होते हैं वह उन्हीं अधिकारियों के आगे पूंछ हिलाता है। जब ठेके लेने के लिये दूरे विभाग में जाता है तो वहां उसकी कुत्ता खिंचाई होती है। मोहल्ले के कुर्ताधारी अपने क्षेत्र में ही भाषण देते हैं,दूसरे क्षेत्र में जाने की हिम्मत कुछ बिरले ही करते हैं। आप लोगों को इस काम में दूसरे कुत्ते सारी इंसानों का सहयोग मिल जाता है। इस मामले में यहां कुत्तानीयत हमारे यहां विशुद्ध है। हमने तो सुना है आप लोगों ने अपनी-अपनी पार्टियों के भी मोहल्ले बना लिये हैं। चलो अच्छा ही है। हमारी व्यवस्था विशेष है और इस व्यवस्था में बुरा मानने वाली कोई बात भी नहीं है। हम अगर इस व्यवस्था, इस अनुशासन को नहीं मानेंगे तो आपकी तरह अव्यवस्था फैल जाएगी। आप लोग तो जहां मन हुआ वहां मोहल्ला नीति का पालन करते हो और जब अपना फायदा हुआ तो तुरंत राष्ट्रव्यापी हो जाते हो। हमारी व्यवस्था से खाने का संकट कभी नहीं आता। हमारे मोहल्ले के लोग जानते हैं किस-किस कुत्ते को खाना देना है। सुरक्षा का संकट भी नहीं आता। कोई हमारे बहन-बेटी की अस्मत पर हमसे बिना पूछे हाथ भी नहीं डाल सकता। पर आप तो जानते ही हो, आखिर हम कुत्ते ही जो ठहरे। कभी-कभी प्रेमालाप के लिये दो मोहल्लों की सीमा तोड़ दी जाती है। यह तो वैसे ही समझो जैसे मैत्री बैठक हो रही हो। हकीकत ये है कि असल कुत्ता हमेशा क्षेत्रवादी होगा। हमें अपने इस क्षेत्रवादी या यूं कहें मोहल्लावादी होने पर हमेशा गर्व है। हमारे यहां मोहल्लावाद इतना शक्तिशाली है कि जातिवाद आता ही नहीं। हम तो ऐसे जानते हैं जैसे टामी नुक्कड़ वाला, कालू हलवाई वाला, राज्जा दारू वाला, भूरा अंडेवाला...। इसमें कोई कोटा भी फिक्स नहीं है। इतना तय है कि भूरा के बच्चे अंडे की ठेल के आस-पास ही घूमेंगे और राज्जा के दारू वालों द्वारा छोड़े गये दोने ही चाटेंगे।
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पंकुल

5 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

कुत्ता क्षेत्रवादी नहीं मुहल्ला वादी होता है। मुहल्ला कहते ही उसे हैं जिस इलाके के कुत्ते एक दूसरे पर नहीं भोंकते।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

आपकी कुत्ता चर्चा जोरदार है। अन्दर से आदमी का काफी कुछ मिलता है इस जानवर से। ऐसा एक वाकया यहाँ पढ़िए।

राज भाटिय़ा ने कहा…

क्या बात है, अब कुता भाषण भी अपने मोहाल्ले मे ही देता है,धन्यवाद इस कुता पुराण के लिये बहुत दिलचस्प

Satish Saxena ने कहा…

इनकी जाति पर भी प्रकाश डालते तो सोने में सुहागा होता ! बहुत अच्छा लिखा है !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब, मजा आ गया पड़ कर
और ये भी जान कर कि कुत्ते मैं कितने गुण हैं