भगवान सब देखता है। हमने आज तक दुनियां में कुछ देखा ही नहीं। पड़ोसी आया जब चाहा, मारा और भाग गया। हम थोड़ा चीखे, चिल्लाये फिर चुप। यूं कहें अपन को मालूम है कि भाई मेरा मारेगा इसीलिये चुपचाप आंख बंद करके पिटते रहे। पिटना हमारी फितरत है। वैसे भी अपन को इस तरह की लड़ाई पसंद ही नहीं। पड़ोसी में दम होता तो सामने आकर धुनता। अरे दस मारेगा तो हम भी मुरदार नहीं। एक -आध थक्का तो मार ही देंगे। ज्यादा चपड़-चपड़ करने से काम भी कहां चलने वाला। हम तो हम, भाई अपुन के बड़े चचा की भी दम निकलती है। भले ही शेर की तरह दहाड़ें, पर अंदर तो चूहे सरीखे ही हैं। भाया, घर में घुसकर जब उनकी दम निकाल दी तो हम तो वैसे ही एक गाल पर चांटा खाकर दूसरा आगे कर देते हैं।
लेकिन भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। अपन ने सुना भी है, जो दूसरों के लिये गड्ढा खोदता है भगवान उसकी व्यवस्था कर ही देता है। पहले बड़े चचा को मजा चखाया अब छोटे चचा के यहां डंडा बजा दिया। अपन तो सिर्फ समझा ही सकते हैं। कई बार कहा, आदमी को देखकर दोस्ती करो। पर नहीं। मजे तो दूसरे के घर में आग लगाने में आते हैं। छोटे चचा भी कौन कम हैं। उन्हें भी पीठ में ही छुरा भोंकना आता है। चीखेंगे हिन्दी-चीनी भाई-भाई और कब लड़ाई शुरू कर दें पता नहीं।
एक पुरानी कहावत है, चोर-चोर मौसेरे भाई। हो सकता है अपन के दोनों पड़ोसियों में मौसीजात रिश्ता हो। रिश्ता एक जैसा तो फितरत भी एक सी ही होगी। और तो और, अपने के बड़े चचा अभी भी चीख रहे हैं। भैया पाकिस्तान सुधर जाओ। सुधर जाओ वरना...। वरना क्या भैया पूंछ उखाड़ लोगे। जब तुम्हारे घर में आग लगायी तब कुछ नहीं कर पाये अब क्या आसमान से तारे तोड़ लाओगे। खैर, जब इतने बड़े-बड़े लोग कुछ नहीं करते तो हमारा क्या दोष है। हो सकता है बड़े लोग कुछ करते ही नहीं हों। इस बहाने अपन भी बड़ों की लाइन में तो खड़े हो जाएंगे।
पंकुल
pankul
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