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रविवार, 10 अगस्त 2008

बेतुकीः गोल्ड मैडल तो हमई जीत लाते

चचा, काहे दीदे फाड़-फाड़ कर टुकुर-टुकुर टीवी में घुसत जात हो। क्या सोच कर बैठे हो, आसमान से मैडल टूट-टूट कर गिरेंगे। अपने चीनी चचा हर खिलाड़ी को विदा में एक-एक गोल्ड मैडल देंगे। सब आयेंगे और हंसते-हंसते गोल्ड मैडल हमें दिखायेंगे। चचा यूं ही सदियों तक इंतजार करते रहे। शायद दस-बीस, पचास साल बाद तुम्हारी हसरत पूरी हो जाए।
वैसे गोल्ड मैडल तो हमई जीत लावते। पर का बतायें पंद्रह साल के भये तो घर बालन ने कहो खेल आवौ। मैदान में गये तो पहले हाकी खेलन लगे। हाकी को डंडो उठाओ पर का बतावें हम डंडा लये भागत रहे और गेंद इतर-बितर चली गयी। भागत-भागत एक तरफ से गेंद आयी और हमाये पांव पर आइके ऐसी लागी कि नानी याद आये गयी। हमऊने जोर से डंडों मारो पर वोऊ पांव से जा टकराओ ससुर। पांव फूल कै ऐसो मोटो है गयो कि बला दिनन तक बिस्तर पर ही पड़े-पड़े मोटे है गये।
ठीक भये तो सोचो फुटबाल ही खेलें। हाकी में तो डंडा संभाले कि बाल यई न पता चलो। फुटबाल भली हती। बाये पांव से मारत-मारत इते सै उते ले जात रहे। कबहऊ अपयें गोल में मारी कबहऊ पराये। दूसरे दिना गये तो काऊ ने हमैं खेलन ही नाय दऊ। दादा बोले बचुआ दौड़ लगाये लेओ करो। हमऊ सुबै-सुबै निकल लये दौड़न को। पहले एक मौहल्ला में कुत्ता पीछे पड़ि गये। हमऊ कम नाय हते, और तेज दौड़त गये। पीछऊ देखत रहे कऊं कुत्ता-फुत्ता नाय आय जाए। हम पीछई देखत रहि गये और दूसरी तरफ से कालौ कुत्ता टांग चबाये गयो। हम फिर बिस्तर पर लेटि गये। डाक्टर नै चौदह दिना जो इंजेक्शन भुके भैया बहुत पीर भई। जब ठीक भये तो चाचा बोले लला तुम बच्चा हो कछु दिना बाद खेलन जइयो। और बड़े भये। बड़े कालेज में पहुंचे। कंचा-अंटा, गिल्ली-डंडा तो जानत ही हते, चिड़िया बल्ला खेलन शुरू कर दयो। भैया का भला खेल है। यों उछलो, त्यों उछलो। दये मारौ चिड़या में बल्ला। चिड़िया लगैऊ तो चोट न आवे। दस-बारह साल में थोड़ा बहुत सीख गये तब तलक मैच खेलत सांस उखड़न लगी। सच्ची चचा, तुमाई सौं सांस न उखड़ती तो एक नाय, दो-तीन मैडल जीत लाते।
चचा ये तो रही पुरानी बात। अब तो आटोमैटिक युग है। पर अपने हिन्दुस्तानी आटोमैटिक नहीं, प्राचीन परम्परा का निर्वहन करने वाले हैं। अरे मुन्ना जब तक घर के आंगन में गेंद बल्ला न खेले तो क्या फायदा। वो अपने बच्चों को दस-बारह साल की उमर में भी ओलम्पिक में भेज सकते हैं हम नहीं। अपन तो सामाजिक व्यवस्था का पालन करने वाले हैं। जैसा घर वैसा ही माहौल बच्चे को स्कूल में मिलना चाहिए। घर में किसी के खेल का मैदान होता है। बताओ होता है। नहीं ना। जब घर में मैदान नहीं हो सकता तो स्कूल में खेल के मैदान की क्या जरूरत। अरे, बच्चों को कंकड़-पत्थर पर भी खेलना सीखना चाहिए। खेल के सामान का स्कूल में क्या काम। अरे भैया सब तुम्हारे बच्चे ही खेल लेंगे तो मास्साब के बच्चे क्या करेंगे।
पंकुल

बला- कई
हती-थी
इते सै उते-इधर से उधर
सुबै- सुबह
भुके- लगाये
सौं-कसम

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