pankul

pankul

ये तो देखें

कुल पेज दृश्य

शनिवार, 23 अगस्त 2008

बेतुकीः बहुत मुश्किल में पड़ जाओगे कन्हाई

कन्हैया मजे में हो। मंदिर-मंदिर बगल में बांसुरी दबाये मुस्कराते हुए एक टांग पर खड़े-खड़े बहुत आनंद आ रहा है। सुबह शाम माखन मिश्री के भोग लग रहे हैं। महीने में छत्तीस बार छप्पन भोग चख रहे हो। हमसे तो कह दिया कर्म किये जा फल की इच्छा मत करना। अरे, अपन को फल तो क्या सूखी रोटी भी नसीब नहीं हो रही। हमें फल की कोई इच्छा भी नहीं। छप्पन भोग तुम्हीं खाओ। हमारे खाते में सुबह-शाम एक भोग ही कर दो, हम तो उसी में खुश हो जाएंगे।
वैसे जनाब, आप एक ही टांग पर क्यों खड़े हो जाते हो। शायद इसलिये कोई बुलाये तो तुरंत आ जाओ। द्वापर में भी तुम्हारी आदत ऐसी ही थी। मनसुखा ने आवाज लगायी और चल दिये। पढ़ाई-लिखाई की चिन्ता होती तो मैया घर से निकलने काहे देती।
तुम पर आज कल फिल्मी दबाव बन रहा है कि एक बार फिर आकर देखो। कोई कह रहा है, एक बार आजा, आजा, आजा। कुछ कहते हैं कन्हैया, कन्हैया तुम्हें आना पड़ेगा। तुम्हें बुलाने वाले दोनों ही तरह के लोग हैं। कुछ चाहते हैं लाखों कंसों का नाश हो जाए। लेकिन कंस चाहते हैं कि एक बार आकर तो देखो। तुम अपने दरवाजे पर खड़ी लाखों की भीड़ को देखकर कन्फ्यूज मत हो जाना। ये तो इसलिये आते हैं कि थोड़ी बहुत श्रद्धा भक्ति का प्रसाद उनकी तरफ भी खिसक जाए। ये लोग सुदामा से इंसप्राइड हैं। अपने साथ दोना भर प्रसाद लाते हैं। हर बार तो तुम्हारे पर रुक्मणि नहीं बैठी रहेंगी। कभी तो एक-दो इलाइची दाना खाओगे ही।
मेरी व्यक्तिगत सलाह है तुम भूलकर भी यहां मत आना। भाया भले ही तुम्हारे मंदिरों में करोड़ों की सम्पत्ति है। तुम्हारे हाथ में सोने-चांदी की बांसुरी और सिर पर मुकुट रहता है लेकिन बाहर आते ही ये सब गायब हो जाएगा। तुम्हारे नाम पर इंकम टैक्स बचाने वाले अपना-अपना माल ले उड़ेंगे।
तुमने तो सिर्फ गाय चराना सीखा था। अब तुम्हारी गाय माता तुम्हारे भर के लिये दूध दे दें तो गनीमत मानना। बेचारी का खुद ही ठिकाना नहीं रहा। हमने तो भैंस मौसी का इंतजाम कर रखा है। किसी गलतफहमी में मत रहना। दूसरों की भैंस खोलना आसान काम नहीं। हर झगड़े के बाद पूछना पड़ता है तुम्हारी भैंस खोली थी क्या। तुम जब छोटे थे तो पढ़ाई का टंटा नहीं था। अब तो सुबह पांच बजे उठते ही मैया पांच किलो का बस्ता पींठ पर टांग देगी। तुम्हारी आदत थोड़ी डिफर थी। घर से निकले और पहुंच गये क्रिकेट खेलने। गोपियों की मटकी फोड़ी और मक्खन चुराकर खा लिया। पहले तो मैया को गाना सुनाकर काम चल जाता था। तुमने कह दिया मैया मोरी मैं न ही माखन खायो और मैया मान गयीं। अब तो पुलिस अंकल का डंडा चलेगा तो बिना खाये ही बोल दोगे, मैंने ही माखन खायो। तुम्हारा नाम तो हर थाने की लिस्ट में आ जाएगा। हर तीज- त्यौहार पर थानेदार साहब के चक्कर लगाने पड़ेंगे। एक दो जमानती भी साथ रखना पड़ेगा।
बाकी तुम तो बहुत समझदार थे। अर्जुन को इतना बड़ा उपदेश दे डाला। अब आकर कंस मामा के थप्पड़ मारने की भी कोशिश न करना। एक साथ दर्जनों धारएं लग जाएंगी। अपने यहां सारा काम अब कानून ही करता है। कानून की आंखों पर हमने पट्टी बांध दी है। ठीक वैसे ही जैसे तुम्हारे जमाने में गांधारी ने पट्टी बांध ली थी। गांधारी ने हमेशा देश का भला ही चाहा, वैसे ही हम भी चाहते हैं। अगर गांधारी न होती, तो धृतराष्ट्र अपने प्रिय दुर्योधन के पुत्र मोह में कैसे फंसते। अगर दुर्योधन न होते तो महाभारत न होती। महाभारत न होती तो तुम्हें गीता का उपदेश देने का बेहतरीन मौका कहां मिल पाता। तभी तो तुमने कहा था, जो हो रहा है, अच्छा है। होने वाला है वह भी अच्छा होगा। अब यहां आकर अपने गीता के उपदेश का अक्षरशः पालन करके दिखाना।
बहुत मुश्किल में पड़ जाओगे कन्हाई। हकीकत ये है नाटकों में तुम्हारा रास देखने वाले, तुम्हें गांव, गलियों में रास करने की इजाजत नहीं देंगे। तुम्हारे समय में सब लीगल रहा होगा। अब तो कोई गोपी ही थाने ले जाएगी तुम्हें। रोजाना अखबार में पड़ रहे होगे, प्रेमी की धुनाई। इसमें कई तो तुम्हारे रास से प्रेरित रहे हैं बेचारे।
मैं एक चीज तो भूल गया। तुम्हें ड्राइविंग का बहुत शौक था। तभी तो अर्जुन का रथ ड्राइव करने चले गये। अब तांगा चलाओगे तो थोड़ा बहुत कमा सकते हो। पर इतने भर से छप्पन भोग की जुगाड़ होने से रही। तुमने यमुना में कालिया को निपटाया। हमारे यहां अमिताभ बच्चन ने कालिया की ऐसी-तैसी कर दी। तुम यमुना के कालिया की बात करो तो हमने यमुना को इस काबिल ही नहीं छोड़ा कोई कालिया उसमें रहे।
तुमने अपने जमाने में एक बहुत बड़ी गलती की थी। खुद कहते रहे, आत्मा अजर-अमर है और खुद ही कंस और उसके भाई बंधुओं को मार दिया। हमने सुना है हर बार आत्मा छह गुनी हो जाती हैं। तभी तो तुम्हारे यहां का एक कंस इन सबा पांच हजार साल में लाखों तक पहुंच गया। खुद मोक्ष लेकर चले गये। अब कंस आता रहा और तुम सिर्फ मंदिर में, पोस्टर में मुस्कराते रहे। तुम आओ तो अपनी बांसुरी भी छोड़ आना। अब सड़क चलते लोग महिलाओं के गले की चेन नहीं छोड़ेते, तुम्हारी बांसुरी एक दिन भी नहीं बचेगी। न न। बांस वाली भी मत लाना। हम नहीं चाहते कोई तुम्हें नीरो कहे। नीरो को तो जानते ही होगे। कहा जाता है, रोम जल रहा था और नीरो चैन की बांसुरी बजाता रहा। हम इतने भी खुदगर्ज नहीं। हमें तो मुकेश दादा की याद आ रही है। मुझे तुमने कुछ भी न चाहिए, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो। तुम तो भैया मंदिर में बैठे-बैठे अपना जन्मदिन एन्ज्वाय करो। सुबह शाम छप्पन भोग खाओ।
आखिरी शिकायत। तुमने सैकड़ों लोगों का संडे खराब कर दिया। बेचारे लगे हैं तुम्हारी सेवा शुश्रुभा में। चलो, सब चलता है। हैप्पी बर्थडे अगेन।
पंकुल

कोई टिप्पणी नहीं: