pankul

pankul

ये तो देखें

कुल पेज दृश्य

रविवार, 17 अगस्त 2008

मैं कुत्ता (1). .. पूंछ सीधी करके नाक नहीं कटानी


मैं कुत्ता हूं। अपने दास जी पिछले पांच सौ साल से रिसर्च करके नाक में दम किये हैं। पता नहीं हमारी निजी जिन्दगी में ताक-झांक करके उन्हें क्या मिल गया। चलो कोई बात नहीं। जब उन्होंने ताक-झांक ही कर दी है हम ही उनकी बात लिखे देते हैं।
मैं कुत्ता हूं। मेरी सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक साख तुम मनुष्यों से कुछ ज्यादा है। मेरा उल्लेख प्राचीन पुराणों में भी है। तुम्हारे इष्ट धर्मराज युधिष्ठर जब स्वर्ग गये तो मैं अकेला ही उनके साथ था। देवी-देवताओं के साथ भी मुझे अक्सर स्थान मिल ही जाता है। तुम जैसे स्वार्थी मनुष्य मेरे काले वर्ण की पूजा करते हैं। मैंने आज तक किसी मनुष्य की पूजा नहीं की।
मुझे सबसे ज्यादा परेशानी तब होती है जब लोग मेरी पूंछ के पीछे पड़ जाते हैं। तुम लोगों ने कहावत बना ली है कुत्ते की पूंछ टेढ़ी की टेढ़ी ही रहेगी। अरे हमने आज तक कभी आपकी मूंछ के बारे में कहा। हमारी पूंछ से आपको क्या लेना-देना। पूंछ हमारी शान है। जिसकी पूंछ जितनी घुमावदार और टेढ़ी समझो कुत्ता समाज में उसका उतना ही महत्व। दर्जनों कुत्ते उसके आगे-पीछे घूमते फिरते हैं। जैसे तुम लोगों के यहां लम्बे कुर्तों वालों की जमात होती है। जिसका जितना लम्बा कुर्ता उतना बड़ा नेता। तुम लोग अपने कुर्ते का साइज घटाते-बढ़ाते रहते हो। हमारे यहां यह सुविधा सामान्य तौर पर उपलब्ध नहीं है। वैसे जल्द ही ब्यूटी पार्लर खुल सकते हैं जहां हमारी पूंछ को टेढ़ा किया जा सकता है। ये तो तुम भी जानते हो हमारी पूंछ को सीधा भले ही नहीं किया जा सके, पर टेढ़ा करने में कोई परेशानी नहीं है।
ऐसा नहीं, हमारे यहां सीधी पूंछ वाले नहीं होते। कुछ बदकिस्मत सीधी पूंछ किये रहते हैं। ऐसे कुत्ते हमेशा दूसरों के पीछे ही घूमते रहते हैं। चापलूसी उनकी आदत में शुमार हो गया है। दरअसल जबसे हम कुत्ते आबादी के नजदीक आते जा रहे हैं मनुष्यों के दुर्गुण हममें समाते जा रहे हैं। कुत्तों को दो रोटी डाल कर तुम उन्हें दुम हिलाऊ बना लेते हो। ऐसे कुत्तों का हमने बायकाट करने का फैसला किया था लेकिन मतदान में वह प्रस्ताव गिर गया। जब दुम हिलाऊ कुत्तों की बात चली तो चिल्ल-पौं शुरू हो गयी। दुर्भाग्य तो ये रहा कि तमाम ऊंची पूंछ किये फिरने वाले कुत्ते भी बंद कमरे में दुम हिलाते ही नजर आये।
तुम्हारे मनुष्य समाज में यह प्रथा बहुत ही पुरानी है। तुम लोगों ने इस काम को सर्विस टैक्स बना लिया है। दलाली तुम्हारी आदत है। किसी की थाने में रिपोर्ट लिखवायी तो दलाली। किसी का ट्रांसफर करवाया तो दलाली। किसी की नौकरी लगवायी तो दलाली। किसी को ठेका दिलवाया तो भी दलाली। तुम्हारी इसी आदत के चलते गांव और मोहल्ले के कुत्तों ने दरवाजे-दरवाजे जाकर रोटी खाने की आदत डाल ली है। मैं सदियों से देख रहां हूं, गांव में कुत्ते दरवाजे पर रोटी के लिए जीभ निकाले बैठे ही रहते हैं। इन कुत्तों का अपना तो कोई ईमान नहीं। जब चाहे तब कोई इनकी दुम पर पैर रखकर चला जाए। बस दिखाने के लिये रात में थोड़ी सी भौं-भौं कर देते हैं। इसी भौं-भौं की दलाली में रोटी खाते-खाते इनकी उम्र बीतती चली गयी है।
शहरों में तो आपने और भी नरक कर दिया है। चेन से बांध कर जहां चाहा वहां खड़ा कर दिया। हमारी तो कोई निजी जिन्दगी ही नहीं रही। बच्चे-बच्चे तक हमारी दुम को पकड़ कर जहां चाहें वहां खींच ले जाते हैं। ये सब मालूम है सिर्फ इस पापी पेट के लिये कुछ कुत्ते कर रहे हैं। घर बैठे खाने की आदत जो पड़ गयी है। इन्हें अपनी दुम की भी चिन्ता नहीं रही। हमें बहुत बुरा लगता है कुछ मनुष्य दूसरों को कुत्ते की दुम की गाली देते हैं। हमने भी अपने यहां कहना शुरू कर दिया है मनुष्य की मूंछ। आप हमारी पूंछ से छेड़छाड़ बंद करो हम आपकी मूंछ को बख्श देंगे।
तुम्हें सच्ची बतायें। भले ही हम जैसे ऐंठीली गोल-गोल दुम वालों की बकत कुत्तों ने कम कर दी हो लेकिन तुम्हारी कसम आज भी जब कोई गबरू जवान निकल जाता है तो उसकी बात ही निराली होती है। और क्या बतायें, सड़क पर जब वो इठला-इठला कर चलता है तो ओर चारों कुत्ता बालाओं की लाइन लग जाती है। उसकी पूंछ की ओर देखकर तो तुम मनुष्य भी घबरा जाते हो। (क्रमशः)
पंकुल

1 टिप्पणी:

Anwar Qureshi ने कहा…

अच्छा लिखा है आप ने ..