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मंगलवार, 5 अगस्त 2008

बेतुकीः जित देखों उत ओर सखा रे, दिखें नाग ही नाग

रात के बारह बजते ही अपने चचे एक कुल्हड़ दूध लेकर जंगल की ओर निकल लिये। सोचा दस-बीस पेड़ों के नीचे एक-एक चम्मच लुढ़का आयेंगे। जैसे ही घर से बाहर कदम बढ़ाया कुल्हड़ खाली हो गया। चचे ने दोबारा कुलहड़ भरा और फिर निकल लिये। जितनी बार चचे बाहर गये उतनी बार कुल्हड़ खाली हो गया। थोड़ी देर बाद उनकी समझ में आ गया जिन्हें वह जंगल में खोजने जा रहे हैं वह उनकी आस्तीन में ही छिपे हैं।
हैप्पी नाग पंचमी।
खैर, जंगल के नाग भले ही दुर्भाग्यशाली हों लेकिन अपने नागों का भाग्य चरम पर है। लोगों को अप्रत्यक्ष लाभ देने वाले नाग नहीं चाहिये। यहां तो साक्षात नागराज चाहिये। हकीकत में तो सतयुग से पहले का सा समय जान पड़ता है भैये। अपन ने सुना है कि नाग देवता कभी आदमी तो कभी दूसरा जीव बन जाते थे। आज के नाग तो परमानेंट इंसान बन गये हैं। कब किसको डस लें पता नहीं। नागों ने भी खूब तरक्की की है। जंगल छोड़कर महलों में रहने लगे हैं। और तो और रोजाना दूध-मलाई चट कर रहे हैं। वो जमाने लद गये जब नाग सिर्फ कच्चा दूध पीते थे। अब तो दिन में दूध और रात में....। आज का नाग डसता नहीं है। अपने सभी चेलों को मलाई बांटता है। हुई न समाज की तरक्की। खुद जिओ और औरों को भी जीने दो का इससे बढ़िया उदाहरण कोई हो सकता है। देवता बैठे हैं एक तरफ से सरकारी भक्त आता है तो दूसरी तरफ से प्राइवेट भक्त। सरकारी भक्त को मलाई चाहिये और प्राइवेट भक्त को दूध पैदा करने के लिए और गोरखधंधे। नाग ने दोनों की सेटिंग कराई और हो गयी दोनों की तरक्की। आज के नाग की क्वालिटी विष नहीं, सेटिंग है। जिसके पास जितने भक्त उतना बड़ा। जितनी अच्छी सेटिंग उतना प्रभावशाली। अरे, ऐश की मत पूछो। भक्तों की गाड़ियां आगे-पीछे डोलती हैं और देवता इठलाते झूमते मस्त घूमते हैं। पहले लोग दूर भागते थे अब पैरों पर गिर पड़ते हैं। हमने तो बड़े-बड़े नाग देखे हैं जी। कोई राष्ट्रीय राजधानी की सेटिंग रखता है तो कोई प्रदेश की राजधानी की। कहीं मंत्री-संत्री पहरे पर खड़े हैं तो कइयों को भक्त विदेश की यात्रा करा रहे हैं। यहां दूध को लुढ़काना नहीं पढ़ता। जिसके पास दूध है वह भी मजे में और जिसके पास नहीं वह भी मजे में।
पंकुल

1 टिप्पणी:

Arvind Mishra ने कहा…

नाग पंचमी की अच्छी प्रस्तावना की आप ने ......