कहते हैं कभी-कभी ज्यादा समझदारी या यूं कहें चालाकी उल्टी ही पड़ जाती है। अपने छोटे चौधरी को ही लो। सोच रहे थे उत्तर प्रदेश में भी ऐश करेंगे और केंद्र में भी। दोनों हाथों से लड्डू खायेंगे। उत्तर प्रदेश में बिटुवा को मंत्री बनवायेंगे फिर उसे केंद्र में ले जाएंगे। सपना बुरा नहीं था। बाप दादा की खड़ी की वोटों की फसल को नाती-पोते नहीं काटेंगे तो क्या पड़ोसी काटने आयेंगे।
अरे भाई-भतीजावाद का आरोप लगाने वाले तो कुंठित लोग है। जिनके बाप-दादा ने उनके लिये फसल तैयार नहीं की वही चीखते हैं। भाई जी, चीखने-चिल्लाने से कुछ नहीं होगा। छोटा सा उदाहरण सुनो कहानी अपने आप समझ में आ जावेगी। अपने चचे परचून की दुकान करते हैं। सुबह से शाम तक भले ही चबन्नी कमायें लेकिन कमाते जरूर हैं। अब चचे का पड़ोसी कहे कि उसके बेटे को चचा दुकान दे दें तो नाइंसाफी होगी। अरे जो चीखते हैं उनके बेटे इस काबिल ही नहीं तो क्या करें।
खैर बात हो रही थी छोटे चौधरी की। बेचारे को माया मैडम ने न इधर का छोड़ा न उधर का। बहुत अकड़ कर गये थे। क्या सोचा था, वोटर शाबासी देगा। अरे जनाब, बुढ़ापा आ गया इधर से उधर जाते-जाते। अब तक एक जगह टिककर तशरीफ रख दो। शेर को सबा शेर मिल ही गया। मैडम ने पहले एक दरवाजा बंद किया फिर अपने यहां अंगूठा दिखा दिया। छोटे मियां अब दर-दर पर गाते फिर रहे हैं, कोई तो होता मेरा अपना, जिसको हम अपना कह पाते...। भैया ऐसे ही भटकते रहो। जरूरी नहीं एक बार की जुगाड़ हर बार काम आ ही जाए।
पंकुल
pankul
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1 टिप्पणी:
काठ की हांडी हैं वो भी बिन पैंदी की.
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