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शुक्रवार, 1 अगस्त 2008

शब्द

मेरे शब्द
जिन्हें मैं रचता
सदा नये आकार देता
जिनकी पहचान के लिये
अपने कर्तव्य का पालन करता
वही मेरे अस्तित्व पर
अब अंगुली उठाते हैं
शब्द
जो मेरा दर्पण थे
कोरे कागज पर बिखरकर
मेरी उपस्थिति का आभास
जो हर पल कराते थे
वही मेरे अस्तित्व पर
अब अंगुली उठाते है।
मेरे शब्द।।
पंकज कुलश्रेष्ठ

3 टिप्‍पणियां:

अमिताभ मीत ने कहा…

बहुत बढ़िया है भाई. बधाई.

शोभा ने कहा…

शब्द
जो मेरा दर्पण थे
कोरे कागज पर बिखरकर
मेरी उपस्थिति का आभास
जो हर पल कराते थे
वही मेरे अस्तित्व पर
अब अंगुली उठाते है।
बहुत सुन्दर और प्रभावी लिखा है।

Dr. Ravi Srivastava ने कहा…

.....बहुत बढ़िया है.